Sunday 9 August 2009

Crime Prevention Begins at home : बच्चों को चाहिए इमोशनल टच


सोलह वर्षीय ब्रेन्डा स्पेन्सर को उसके जन्मदिन पर गिफ्ट के रूप में रायफल मिली। उसने अपने सैन डिएगो स्थित घर के नजदीक एक प्रायमरी स्कूल में बच्चों पर गोलियां चला दीं। दो बच्चों की जान चली गई। नौ घायल हो गए। इस बाबत उससे पूछा गया तो उसका जवाब था मुझे सोमवार पसंद नहीं है। मैंने जो कुछ किया, उससे वह सोमवार जीवन्त हो उठा।

टैक्सास के एलिस काउंटी में गांव की एक सड़क पर दो लाशें पड़ी मिलीं। उनमें से एक चौदह वर्षीय लड़के की थी, जिसे गोली मार दी गई थी। लेकिन, दूसरी लाश एक तेरह वर्षीय लड़की की थी, जिसके साथ बलात्कार करके उसे मार कर लाश को क्षत-विक्षत किया गया था। उस लड़की की लाश से उसका सिर और हाथ गायब थे। हत्यारा बाद में पकड़ा गया, जिसका नाम जेसन मेसी था। मेसी ने तय किया था कि वह ऎसा कुख्यात सीरियल किलर बने जैसा टैक्सास के इतिहास में दूसरा कोई नहीं हुआ। वह जब नौ वर्ष का था तो उसने सबसे पहले एक बिल्ली की हत्या की। बाद में कई कुत्तों और गायों की हत्या की। उसकी डायरी में युवतियों के साथ बलात्कार, हत्याओं और नरभक्षी की कई काल्पनिक कहानियां लिखी मिलीं। वह मानता था कि वह उस मालिक की सेवा कर रहा है, जिसने उसे ज्ञान और शक्तिदी है। उस पर लड़कियों की हत्याएं करने और लाशों को कब्जे में रखने का पागलपन सवार था।

फ्लोरिडा के नौ वर्षीय जेफ्रे बैले ने एक तीन वर्षीय बच्चे को मोटल के तरणताल में गहरे पानी में ले जाकर डुबोया और तरणताल के किनारे कुर्सी लगाकर बैठ गया। वह उसे तब तक देखता रहा, जब तक उसकी जान नहीं चली गई। वह किसी को डूब कर मरते हुए देखना चाहता था। जब उससे पूछा गया तो वह शान से पूरा वृतांत बताता रहा उसने जो कुछ किया उसका उसे लेश-मात्र भी दुख नहीं था।

ये कुछ बच्चों के उदाहरण हैं, जो विकृत मस्तिष्क के थे। ऎसी घटनाओं से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पागलपन केवल वयस्कों में ही नहीं होता। बाल विशेष्ाज्ञों का विश्वास है कि बच्चों में पागलपन निरंतर बढ़ता जा रहा है। एक शोध में इन बच्चों को पागल बच्चे (साइकोपैथ) करार दिया गया है। कहा गया है कि ये बच्चे वयस्क पागलों से भी अधिक खतरनाक हैं। हो सकता है कि ये हत्या जैसा जघन्य अपराध न कर पाएं या उनमें ऎसा अपराध करने का दुस्साहस न हो। लेकिन, वे अपने लाभ के लिए दूसरों का अहित करने, उन्हें धोखा देने और उनका शोषण करना सीख जाते हंै। समझा जाता है कि ऎसे बच्चों में सहानुभूति का वह भाव पनप नहीं पाता, जिसके कारण लोग दूसरे के दुख को महसूस कर पाते है। उनमें इसकी बजाए क्रोध, बेईमानी, घमंड, बेशर्मी और निर्दयता की भावनाएं पैदा होने लगती हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने अमरीका में हत्या के आरोपियों के पिछले पचास वर्षो के इतिहास में से करीब सौ मामले लिए और उनमें से किशोर वय के 19 हत्या के आरोपियों को अध्ययन के लिए छांटा। इससे पता लगा कि जहां वयस्क अपराधी अपराध की वारदात अकेले ही करना पसंद करते हैं, वहीं बच्चे अपने साथियों के सहयोग से जघन्य अपराध को अंजाम देते हैं। पिछले बीस वर्षो में हुई स्कूली हिंसा के बीस मामलों में नेशनल डेंजर एसेसमेंट एसोसिएशन की सीक्रेट सर्विस ने यह पाया कि अपराध करने से पहले बच्चे किसी न किसी को यह बताते रहे हैं कि वे क्या करने जा रहे हैं, ऎसे बच्चों में से आधे का मानसिक संतुलन बिगड़ा हुआ था।

कनाडा के विशेषज्ञ डॉ. डेविड लाइकेन के अनुसार असामाजिक व्यवहार करने वाले अधिकांश बच्चों का विकास मां-बाप के साए में अच्छी तरह नहीं होता। या तो उनके पिता नहीं होते या पिता उनकी सही देखभाल नहीं करते और उनकी माएं भी उन्हें समाज में रहने के तौर-तरीके सिखाने पर ध्यान नहीं देती। लाइकेन ऎसे बच्चों को सोशियोपैथ कहते हैं और उनका मानना है कि उनके सामाजिक जीवन में सुधार कर उनकी संख्या घटाई जा सकती है। उनका कहना है कि अपराध प्रवृत्ति का कारण आनुवांशिक भी होता है। लेकिन, इस तरह मिली आनुवांशिक प्रवृत्तियों को मां-बाप अच्छे लालन-पालन से बदल सकते हैं। उन बच्चों में आनुवांशिकता में मिली अपराध की भावना को निडरता, पहल करने की प्रवृत्ति तथा संवेदनशीलता के गुणों में भी बदला जा सकता है।

यह मां-बाप पर निर्भर करता है और जहां मां-बाप अपने इस दायित्व को निभाने में असफल रहते हंै, वहीं बच्चे हिंसक हो उठते हैं। वे कहते हंै कि अच्छे लालन-पालन से उन्हें बदला जा सकता है। कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि पागल बच्चों के मस्तिष्क में असामान्य हलचलें होती हैं। कुछ परिस्थितियों में उनमें अन्य बच्चों की तुलना में देर से प्रतिक्रिया होती है। जैसे सजा मिलने का भय उनमें सामान्य बच्चों की अपेक्षाकृत कम होता है। उन्हें वे काम करने में ज्यादा मजा आता है, जिनसे उनके नर्वस सिस्टम में उत्तेजना पैदा होती है। बाल विकास के क्षेत्र में कई अनुसंधानकत्ताüओं का विश्वास है कि बच्चे का यदि अपने मां-बाप से भावनात्मक जुड़ाव गहरा हो तो उसके हिंसक होने की आशंकाएं घट जाती हैं। व्हाय वर सन्स टर्न वाइलेंट एंड हाऊ वी केन सेव देम पुस्तक के लेखक डॉ. जेम्स गर्बारिनो का कहना है कि बाल विकास मूलत: सामाजिकता से जुड़ा है।

बच्चों और बाहरी दुनिया के बीच संबंधों में उससे स्नेह करने वाले माता-पिता महत्वपूर्ण कड़ी हंै। बच्चे संबंधों के जरिए ही बाहरी दुनिया से जुड़ पाते हैं। जो बच्चे हत्या जैसे जघन्य अपराध में लिप्त हो जाते हैं, वे दरअसल बाहरी दुनिया से सही ढंग से जुड़ नहीं पाते। बच्चे में अगर क्रोध, प्रतिरोध, अविश्वास, घृणा, संशय के दोष उत्पन्न होते हैं तो इसका कारण यह है कि जन्म के नौ माह में उसका लालन-पालन ढंग से नहीं हुआ। अध्ययन के अनुसार जिन बच्चों का जन्म के बाद पहले नौ माह में लालन-पालन अच्छे ढंग से होता है, वे बाद के जीवन में अधिक प्रतिस्पर्द्घी तथा सामंजस्य का जीवन जीते हैं। अपने जीवन के पहले नौ माह में से भी पहले तीन माह नवजात शिशु अपना संबंध अपने माता-पिता से जोड़ने का प्रयास करता है। कुछ नवजात शिशु सरल होते हैं, जबकि कुछ जटिल प्रकृत्ति के।

माता-पिता को इस संबंध को प्रगाढ़ बनाने के लिए अपनी तरफ से प्रयत्न करने पड़ते हैं। इन आरंभिक माह में बच्चे से संबंध जोड़ना वैसे भी बहुत मुश्किल होता है। एक-दो माह के बच्चे को अगर उसके लालन-पालन के दौरान कई हाथों से गुजरना पड़े तो वह किसी से भी गहरा संबंध नहीं जोड़ पाता। ऎसे बच्चे को जब कोई उठाएगा तो वह उससे आंखें नहीं मिलाता बल्कि उनकी हरकत का प्रतिरोध करेगा। ऎसे बच्चों की माताओं को प्रयत्न करना चाहिए कि जब वे अपने बच्चों को स्तन-पान कराएं तो कोशिश करें कि बच्चा उनसे आंख मिलाते हुए दूध पीए। बच्चे का अपनी मां से जुड़ाव गहरा होता है।

दूध, मांस, फल तथा सब्जियां जिस तरह शरीर के लिए जरूरी हंै, उसी तरह बच्चे को संतुलित अवस्था में भावनात्मक पोषण की भी आवश्यकता है। माता-पिता का यह दायित्व है कि वे बच्चे को समाज से जोडेें और उनमें वे गुण पैदा करें कि वे समाज में बुराइयों की पहचान कर सकें और उनसे दूर रह सकें। अनुसंधानों से यह भी पता लगा है कि बच्चे में गर्भावस्था के दौरान ही हिंसक भाव विकसित होने लगते हैं। नवजात शिशु को संतुलित आहार के साथ संतुलित भावनात्मक पोषण भी मिलना चाहिए। उसके अच्छे चरित्र का निर्माण हो सकेगा।

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