Saturday 29 August 2009

योग : आंखों के लिए आसन


दिनभर के काम से आंखों का थक जाना आम बात है, इससे हमें परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। इससे निजात पाने के लिए आइए कुछ अभ्यास सीख लें।

पॉमिंग : किसी भी आरामदायक स्थिति में बैठ जाएं और कुछ पल के लिए आंखें बंद कर लें। दोनों हथेलियों को आपस में तेजी से रगड़ें, ताकि वे गरम हो जाएं। उसके बाद दोनों हथेलियों को आंखों की पलकों पर रखें और हाथ की ऊर्जा को बंद आंखों से धारण करें। कुछ ही पल में आप आराम महसूस करेंगे। जब तक हथेलियों की गर्मी को महसूस करें, तब तक इसी अवस्था में रूकें। उसके बाद हथेलियों को हटा लीजिए। आंखें बंद ही रखें और इस क्रिया को तीन बार दोहराएं।

विशेष : अंगुलियों से आंखों पर दबाव न डालें। सिर्फ हथेलियों के बीच के भाग से ही आंखों को ढकें।

लाभ : जब भी आप पढ़ाई करते समय, टेलीविजन देखने, कंप्यूटर पर काम करने या किसी भी कारण से आंखों में तनाव महसूस करें, तब इस क्रिया का अभ्यास जरूर करें।

लंबाई नहीं बढ़े तो!


क्या आपक ा बच्चा अपने हम उम्र बच्चों से लंबाई में छोटा है यदि हां, तो अभी से चेत जाइए। हो सकता आपके बच्चे की लंबाई "सीलिएक डिजीज" की वजह से नहीं बढ़ रही हो। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज [एम्स] नई दिल्ली में हुए एक अनुसंधान के निष्कर्षों से पता चला है कि बच्चों की लंबाई नहीं बढ़ने का एक प्रमुख कारण सीलिएक डिजीज है।

क्या है सीलिएक
सीलिएक यानी गेहूं से एलर्जी की बीमारी। दरअसल सीलिएक रोग में गेहूं से एलर्जी के कारण उसमें पाए जाने वाले "ग्लूटेन" प्रोटीन का शरीर में पाचन नहीं हो पाता और मरीज की छोटी आंत की विलाई नष्ट होने लगती है। गेहूं अपने आप में बुरा नहीं है, लेकिन गेहूं में पाए जाने वाले कुछ तžवों [प्रोटीन] से कई लोगों को एलर्जी हो जाती है, तो उनको सीलिएक रोग हो जाता है। यह ठीक वैसा ही है, जैसे किसी व्यक्ति को किसी दूसरे तžवों [चीजों] से एलर्जी हो जाती है और वह अस्थमा ग्रस्त हो जाता है। प्रभावित व्यक्ति में दस्त, पेट फूलना, सर्दी जुकाम, रक्त की कमी, अस्थमा, शारीरिक वृद्धि रूक जाना जैसी शिकायतें रहने लगती हैं।

कौन प्रभावित होता है
वैसे तो सीलिएक डिजीज किसी भी उम्र के मरीजों में पाई जा सकती है, पर सबसे ज्यादा यह बीमारी बच्चों में डायग्नोस की जाती है।

एम्स में शोध
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, नई दिल्ली
में एंडोक्राइनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज्म डिपार्टमेंट के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में पाया कि लंबाई नहीं बढ़ने की शिकायत लेकर आए 100 बच्चों में 18 बच्चों को सीलिएक डिजीज है। पेट के लक्षणों के अलावा इस बीमारी का एक प्रमुख लक्षण है बच्चों की लंबाई नहीं बढ़ना। ऎसा भी संभव है सीलिएक डिजीज से ग्रस्त बच्चों में लंबाई नहीं बढ़ने के अलावा दूसरे कोई लक्षण ही नहीं हों।

अत: ऎसे बच्चे जिनकी लंबाई नहीं बढ़ रही हो एक साधारण ब्लड टेस्ट [टीटीजी] कराकर सीलिएक डिजीज की पहचान की जा सकती है। समय पर सही डायग्नोसिस और उपचार से बच्चों को राहत मिल सकती है।

क्या है उपचार
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. राजेश खड़गावत कहते हैं, "एक बार सीलिएक डिजीज डायग्नोसिस हो जाए, तो गेहूं से बनी हुई चीजें जीवन भर के लिए बंद करनी पड़ती हैं।"

क्या खाएं
चावल, चिवड़ा, मुरमुरा, अरारोट, साबूदाना, मक्का, ज्वार, बाजरा, सिंघाड़े का आटा, कुट्टू का आटा, आलू का आटा, दूध और दूध से घर में बने पदार्थ, मक्खन, घी, मछली, चिकन, अंडा, सभी दालें, सभी फल, सब्जियां, चाय, कॉफी, शहद, रसगुल्ला, घर के बेसन की बनी चीजें, इडली, डोसा, सांभर बड़ा, पॉपकॉर्न, चना [भूंगड़े], चावल के नूडल्स, पेठा इत्यादि।
क्या नहीं खाएं

गेहूं, गेहूं का आटा, मैदा, पूरी, सूजी, सेवइयां, जौ, जई, समोसा, मठरी, पैटीज, ब्ा्रेड, दलिया, बाजार की आइसक्रीम, चॉकलेट, दूध, शैक, बर्फी, जलेबी, सॉस, टॉफी, कस्टर्ड पाउडर, बॉर्नविटा, बूस्ट, गुलाब जामुन, बिस्कुट, प्रोटीन पाउडर, रेडिमेड कॉर्नेफ्लेक्स।

Wednesday 12 August 2009

Patrika - Coming Soon to Ujjain

Few months after Patrika challeged the leading Newspaper in Bhopal & Indore and leads over all the other players in the region, it is now stepping a foot forward in another strategically important city Ujjain.
Madhya Pradesh, the only state where monopoly existed in the Hindi belt of newspaper market has witnessed a sea change. The leader’s 50 years old monopoly has been finally demolished. The recently launched newspaper; Patrika, which comes from the Patrika Group has 5 lakh 75 thousand readers in Bhopal and Indore, this puts it neck to neck with the said leading daily, in just six months of launching. The Expansion to Ujjain will certainly add strength to Patrika’s efforts in becoming the overall leading daily in M.P.
Currently,Patrika enjoys a big lead over the rest of the players in Bhopal and Indore; in fact its readership is more than the numbers of both the 3rd and 4th major player in the state put together.
Elated National Head Marketing, Dr. Arvind Kalia states, “ It is truly a great moment for Patrika team. After an amazing launch in Indore & Bhopal , We are entering Ujjain which is yet another important location in M.P with great strategic importance. When we entered MP an year ago, we came with a commitment that we shall always maintain a high level of quality. I thank the readers and advertisers of MP who have shown their faith in the newspaper & given us the confidence to Expand our wings to Ujjain as well.”
It is interesting to compare what Bhaskar has achieved in 50 years, Patrika has achieved in just 6 months putting the leader in a defending position in Bhopal and Indore. Dainik Bhaskar is already witnessing a continuous decline in its readership of Bhopal and Indore editions, since IRS R2 07. From 20.85 lacs readers in R2 07, the readership has declined by 21% to 16.45 lacs, whilst the ad rates were always sky-high, because of which the CPT for the advertisers rocketed from Re.0.60 in R2 07 to Rs. 1.07 in R1 09 an increase of 78%! Now with Patrika entering Ujjain, it is seen as a milestone step in its journey to Provide Quality News & truth to the people of M.P.
Dr. Kalia says, “Bhopal and Indore together contribute to 74% of the total ad spends on the state of MP,Adding Ujjain to our armour will afurther strenghten our Marketing efforts & strategies in M.P. Patrika is already on the way to capture the major share from advertisers in many sectors. To name a few, for the month of May 09 – Patrika has a 100% ad share of educational clients such as Resonance, FIT JEE, Asia Pacific, IT Bench, Gupta tutorials and many others in Indore. In Bhopal also, Patrika has ad share of more than 50% in segments like real estate, lifestyle, automobile and education..
A very confident & elated Deputy Editor of Patrika Group, Mr. Bhuwanesh Jain states “We at Rajasthan Patrika are strongly committed to our reader’s desire in providing quality news & truth under all circumstances. Our entry in Ujjain is yet another milestone in our endeavor to fulfill the above said commitment to our readers. We are now entering Ujjain and we will do our best to enlighten the journalistic values as we have been doing over the past 50 years. We are committed to provide true news from the roots of the land”.
www.patrika.com

Sunday 9 August 2009

Crime Prevention Begins at home : बच्चों को चाहिए इमोशनल टच


सोलह वर्षीय ब्रेन्डा स्पेन्सर को उसके जन्मदिन पर गिफ्ट के रूप में रायफल मिली। उसने अपने सैन डिएगो स्थित घर के नजदीक एक प्रायमरी स्कूल में बच्चों पर गोलियां चला दीं। दो बच्चों की जान चली गई। नौ घायल हो गए। इस बाबत उससे पूछा गया तो उसका जवाब था मुझे सोमवार पसंद नहीं है। मैंने जो कुछ किया, उससे वह सोमवार जीवन्त हो उठा।

टैक्सास के एलिस काउंटी में गांव की एक सड़क पर दो लाशें पड़ी मिलीं। उनमें से एक चौदह वर्षीय लड़के की थी, जिसे गोली मार दी गई थी। लेकिन, दूसरी लाश एक तेरह वर्षीय लड़की की थी, जिसके साथ बलात्कार करके उसे मार कर लाश को क्षत-विक्षत किया गया था। उस लड़की की लाश से उसका सिर और हाथ गायब थे। हत्यारा बाद में पकड़ा गया, जिसका नाम जेसन मेसी था। मेसी ने तय किया था कि वह ऎसा कुख्यात सीरियल किलर बने जैसा टैक्सास के इतिहास में दूसरा कोई नहीं हुआ। वह जब नौ वर्ष का था तो उसने सबसे पहले एक बिल्ली की हत्या की। बाद में कई कुत्तों और गायों की हत्या की। उसकी डायरी में युवतियों के साथ बलात्कार, हत्याओं और नरभक्षी की कई काल्पनिक कहानियां लिखी मिलीं। वह मानता था कि वह उस मालिक की सेवा कर रहा है, जिसने उसे ज्ञान और शक्तिदी है। उस पर लड़कियों की हत्याएं करने और लाशों को कब्जे में रखने का पागलपन सवार था।

फ्लोरिडा के नौ वर्षीय जेफ्रे बैले ने एक तीन वर्षीय बच्चे को मोटल के तरणताल में गहरे पानी में ले जाकर डुबोया और तरणताल के किनारे कुर्सी लगाकर बैठ गया। वह उसे तब तक देखता रहा, जब तक उसकी जान नहीं चली गई। वह किसी को डूब कर मरते हुए देखना चाहता था। जब उससे पूछा गया तो वह शान से पूरा वृतांत बताता रहा उसने जो कुछ किया उसका उसे लेश-मात्र भी दुख नहीं था।

ये कुछ बच्चों के उदाहरण हैं, जो विकृत मस्तिष्क के थे। ऎसी घटनाओं से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पागलपन केवल वयस्कों में ही नहीं होता। बाल विशेष्ाज्ञों का विश्वास है कि बच्चों में पागलपन निरंतर बढ़ता जा रहा है। एक शोध में इन बच्चों को पागल बच्चे (साइकोपैथ) करार दिया गया है। कहा गया है कि ये बच्चे वयस्क पागलों से भी अधिक खतरनाक हैं। हो सकता है कि ये हत्या जैसा जघन्य अपराध न कर पाएं या उनमें ऎसा अपराध करने का दुस्साहस न हो। लेकिन, वे अपने लाभ के लिए दूसरों का अहित करने, उन्हें धोखा देने और उनका शोषण करना सीख जाते हंै। समझा जाता है कि ऎसे बच्चों में सहानुभूति का वह भाव पनप नहीं पाता, जिसके कारण लोग दूसरे के दुख को महसूस कर पाते है। उनमें इसकी बजाए क्रोध, बेईमानी, घमंड, बेशर्मी और निर्दयता की भावनाएं पैदा होने लगती हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने अमरीका में हत्या के आरोपियों के पिछले पचास वर्षो के इतिहास में से करीब सौ मामले लिए और उनमें से किशोर वय के 19 हत्या के आरोपियों को अध्ययन के लिए छांटा। इससे पता लगा कि जहां वयस्क अपराधी अपराध की वारदात अकेले ही करना पसंद करते हैं, वहीं बच्चे अपने साथियों के सहयोग से जघन्य अपराध को अंजाम देते हैं। पिछले बीस वर्षो में हुई स्कूली हिंसा के बीस मामलों में नेशनल डेंजर एसेसमेंट एसोसिएशन की सीक्रेट सर्विस ने यह पाया कि अपराध करने से पहले बच्चे किसी न किसी को यह बताते रहे हैं कि वे क्या करने जा रहे हैं, ऎसे बच्चों में से आधे का मानसिक संतुलन बिगड़ा हुआ था।

कनाडा के विशेषज्ञ डॉ. डेविड लाइकेन के अनुसार असामाजिक व्यवहार करने वाले अधिकांश बच्चों का विकास मां-बाप के साए में अच्छी तरह नहीं होता। या तो उनके पिता नहीं होते या पिता उनकी सही देखभाल नहीं करते और उनकी माएं भी उन्हें समाज में रहने के तौर-तरीके सिखाने पर ध्यान नहीं देती। लाइकेन ऎसे बच्चों को सोशियोपैथ कहते हैं और उनका मानना है कि उनके सामाजिक जीवन में सुधार कर उनकी संख्या घटाई जा सकती है। उनका कहना है कि अपराध प्रवृत्ति का कारण आनुवांशिक भी होता है। लेकिन, इस तरह मिली आनुवांशिक प्रवृत्तियों को मां-बाप अच्छे लालन-पालन से बदल सकते हैं। उन बच्चों में आनुवांशिकता में मिली अपराध की भावना को निडरता, पहल करने की प्रवृत्ति तथा संवेदनशीलता के गुणों में भी बदला जा सकता है।

यह मां-बाप पर निर्भर करता है और जहां मां-बाप अपने इस दायित्व को निभाने में असफल रहते हंै, वहीं बच्चे हिंसक हो उठते हैं। वे कहते हंै कि अच्छे लालन-पालन से उन्हें बदला जा सकता है। कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि पागल बच्चों के मस्तिष्क में असामान्य हलचलें होती हैं। कुछ परिस्थितियों में उनमें अन्य बच्चों की तुलना में देर से प्रतिक्रिया होती है। जैसे सजा मिलने का भय उनमें सामान्य बच्चों की अपेक्षाकृत कम होता है। उन्हें वे काम करने में ज्यादा मजा आता है, जिनसे उनके नर्वस सिस्टम में उत्तेजना पैदा होती है। बाल विकास के क्षेत्र में कई अनुसंधानकत्ताüओं का विश्वास है कि बच्चे का यदि अपने मां-बाप से भावनात्मक जुड़ाव गहरा हो तो उसके हिंसक होने की आशंकाएं घट जाती हैं। व्हाय वर सन्स टर्न वाइलेंट एंड हाऊ वी केन सेव देम पुस्तक के लेखक डॉ. जेम्स गर्बारिनो का कहना है कि बाल विकास मूलत: सामाजिकता से जुड़ा है।

बच्चों और बाहरी दुनिया के बीच संबंधों में उससे स्नेह करने वाले माता-पिता महत्वपूर्ण कड़ी हंै। बच्चे संबंधों के जरिए ही बाहरी दुनिया से जुड़ पाते हैं। जो बच्चे हत्या जैसे जघन्य अपराध में लिप्त हो जाते हैं, वे दरअसल बाहरी दुनिया से सही ढंग से जुड़ नहीं पाते। बच्चे में अगर क्रोध, प्रतिरोध, अविश्वास, घृणा, संशय के दोष उत्पन्न होते हैं तो इसका कारण यह है कि जन्म के नौ माह में उसका लालन-पालन ढंग से नहीं हुआ। अध्ययन के अनुसार जिन बच्चों का जन्म के बाद पहले नौ माह में लालन-पालन अच्छे ढंग से होता है, वे बाद के जीवन में अधिक प्रतिस्पर्द्घी तथा सामंजस्य का जीवन जीते हैं। अपने जीवन के पहले नौ माह में से भी पहले तीन माह नवजात शिशु अपना संबंध अपने माता-पिता से जोड़ने का प्रयास करता है। कुछ नवजात शिशु सरल होते हैं, जबकि कुछ जटिल प्रकृत्ति के।

माता-पिता को इस संबंध को प्रगाढ़ बनाने के लिए अपनी तरफ से प्रयत्न करने पड़ते हैं। इन आरंभिक माह में बच्चे से संबंध जोड़ना वैसे भी बहुत मुश्किल होता है। एक-दो माह के बच्चे को अगर उसके लालन-पालन के दौरान कई हाथों से गुजरना पड़े तो वह किसी से भी गहरा संबंध नहीं जोड़ पाता। ऎसे बच्चे को जब कोई उठाएगा तो वह उससे आंखें नहीं मिलाता बल्कि उनकी हरकत का प्रतिरोध करेगा। ऎसे बच्चों की माताओं को प्रयत्न करना चाहिए कि जब वे अपने बच्चों को स्तन-पान कराएं तो कोशिश करें कि बच्चा उनसे आंख मिलाते हुए दूध पीए। बच्चे का अपनी मां से जुड़ाव गहरा होता है।

दूध, मांस, फल तथा सब्जियां जिस तरह शरीर के लिए जरूरी हंै, उसी तरह बच्चे को संतुलित अवस्था में भावनात्मक पोषण की भी आवश्यकता है। माता-पिता का यह दायित्व है कि वे बच्चे को समाज से जोडेें और उनमें वे गुण पैदा करें कि वे समाज में बुराइयों की पहचान कर सकें और उनसे दूर रह सकें। अनुसंधानों से यह भी पता लगा है कि बच्चे में गर्भावस्था के दौरान ही हिंसक भाव विकसित होने लगते हैं। नवजात शिशु को संतुलित आहार के साथ संतुलित भावनात्मक पोषण भी मिलना चाहिए। उसके अच्छे चरित्र का निर्माण हो सकेगा।

Saturday 8 August 2009

पाएं खुशियां ही खुशियां

चिंता अच्छे से अच्छे आदमी को बीमार बना सकती है। चिंता को जीतने का सर्वश्रेष्ठ तरीका समस्या का विश्लेषण कर उसके अनुसार हल निकालना है। चिंता के बारे में सोचें, मगर उसे स्वयं पर हावी न होने दें। प्रसिद्ध दार्शनिक और चिंतक डेल कारनेगी ने अपनी पुस्तक "चिंता छोड़ो, सुख से जियो" में चिंता दूर करने के कई कामयाब नुस्खे बताए हैं। इनमें से आपके लिए पेश हैं चुनिंदा फार्मूले।
पहला फार्मूला
इससे पहले की चिंता आपको खत्म करे आप चिंता को खत्म कर दें।
वह रात मुझे याद रहेगी जब मैरियन जे. डगलस ने हमें क्लास में अपनी आप बीती सुनाई। उसने हमें बताया कि कैसे उसके घर में दो हादसे हुए। पहली बार उसकी प्यारी सी पांच साल की बच्ची मर गई और दस माह बाद पैदा हुई एक और लड़की पांच दिन में ही चल बसी।
यह दोहरा हादसा असहनीय था। मैरियन ने कहा, "मैं इसे नहीं झेल पाया। मैं न तो सो पाता, न खा पाता, न ही आराम कर पाता। मेरी हिम्मत टूट चुकी थी और मेरा आत्मविश्वास जवाब दे चुका था। ऎसा लगता था जैसे मेरा शरीर किसी शिकंजे में जकड़ा हो और शिकंजा लगातार कसता जा रहा हो। परन्तु ईश्वर की कृपा से मेरा एक बच्चा जीवित था। मेरा चार साल का पुत्र। उसने मेरी समस्या सुलझा दी। एक दोपहर जब मैं दुख में डूबा बैठा था तो, उसने आकर कहा, "डैडी मेरे लिए बोट बना दो।" उस समय कुछ भी करने का मूड नहीं था। परन्तु मेरा बेटा जिद्दी था। आखिरकार मुझे हार माननी पड़ी। उसकी टॉय बोट बनाने में मुझे तीन घंटे लगे। जब मैंने बोट पूरी बना ली तब जाकर मुझे अहसास हुआ कि दरअसल महीनों की चिंता के बाद इन तीन घंटों में मुझे इतनी शांति और मानसिक राहत मिली थी। इस खोज ने मुझे नींद से जगाया। सोचने पर मजबूर कर दिया। कई महीनों में पहली बार मैं कुछ सोच रहा था। मैंने महसूस किया कि जब हम किसी काम की योजना बनाने और सोचने में व्यस्त हो जाते हैं, तो चिंता करना मुश्किल होता है। मेरे मामले में बोट बनाने के काम ने मेरी चिंता को चारों खाने चित्त कर दिया। इसलिए मैंने फैसला किया कि मैं खुद को व्यस्त रखूंगा।"
"अगली रात को मैं पूरे घर में घूमा और उन कामों की सूची बनाई, जो किए जाने चाहिए थे। दो सप्ताह में मैंने 242 कामों की सूची बना ली। अगले दो साल में मैंने इनमें से ज्यादातर काम पूरे कर दिए। इसके अलावा मैंने अपने जीवन को प्रेरक और दूसरी गतिविधियों में व्यस्त कर दिया। मैं अब इतना व्यस्त हूं कि मुझे चिंता करने के लिए वक्त ही नहीं मिलता।"
व्यस्त रहने जैसे सामान्य कार्य से हमारी चिंता क्यों दूर हो जाती हैक् ऎसा एक नियम के कारण होता है। यह नियम मनोविज्ञान के सबसे मूलभूत नियमों में से एक है। यह नियम है-"कोई भी मानवीय मस्तिष्क, चाहे वह कितना ही प्रतिभाशाली क्यों न हो, एक समय में एक से ज्यादा चीजों के बारे में नहीं सोच सकता।
जॉर्ज बर्नाड शॉ सही थे। उन्होंने अपने एक वाक्य में सब कुछ कह दिया। उनका कहना था,"दुखी होने का रहस्य यह है कि आपके पास यह चिंता करने की फुरसत हो कि आप सुखी हैं या नहीं।" तो इस बारे में सोचने की झंझट ही नहीं पालें। अपने हाथ मलें। कमर कसें और व्यस्त हो जाएं।
दूसरा फार्मूला
याद रखें, आपके जैसा इस दुनिया में कोई नहीं है।
एक बड़ी तेल कंपनी के रोजगार निदेशक पॉल बॉइन्टन से मैंने पूछा कि लोग रोजगार के लिए आवेदन देते समय सबसे बड़ी गलती कौन सी करते हैं। बॉइन्टन हजारों लोगों के इंटरव्यू ले चुके थे और उन्होंने इस विषय पर एक पुस्तक भी लिखी थी। उनका कहना था, "नौकरी के लिए आवेदन देने में लोग सबसे बड़ी गलती यह करते हैं कि वे अपने वास्तविक स्वरूप में नहीं रहते। अपने असली व्यक्तित्व में रहने और पूरी तरह खुलकर बताने के बजाए वे अक्सर ऎसे जवाब देने की कोशिश करते हैं, जो उनके हिसाब से आप सुनना चाहते हैं। परन्तु यह तरीका सफल नहीं होता, क्योंकि कोई भी नकली चीज नहीं चाहता। कोई भी जाली सिक्का नहीं चाहता।"
आप में और मुझमें इस तरह की योग्यताएं हैं, इसलिए इस बात की चिंता करने में एक पल भी बर्बाद न करें कि हम दूसरे लोगों की तरह नहीं हैं। आप इस दुनिया में एकदम अनूठे हैं। जेनेटिक्स विज्ञान हमें बताता है कि आप जो हैं, वह पूरी तरह से आपके पिता के चौबीस और आपकी माता के चौबीस क्रोमोसोम की देन है। हर क्रोमोसोम में दर्जनों से लेकर सैंकड़ों जीन्स हो सकते हैं और कई बार तो एक जीन ही इंसान के पूरे जीवन को बदलने की क्षमता रखता है।
आपके माता-पिता के मिलने और समागम के बाद आपकी तरह का निश्चित इंसान पैदा होने की संभावना तीन लाख बिलियन में से एक थी। दूसरे शब्दों में, अगर आपके तीन लाख बिलियन भाई-बहन होते तो, वे सबके सब आपसे अलग हो सकते थे। क्या यह बात अनुमान पर आधारित है। जी नहीं। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है। जब चार्ली चैप्लिन फिल्मों में आए, तो फिल्म निर्देशकों ने इस बात पर जोर दिया कि चैप्लिन उस युग के एक लोकप्रिय जर्मन कॉमेडियन की नकल करें। परन्तु चार्ली चैप्लिन को तब तक कामयाबी नहीं मिली जब तक उन्होंने अपने असली स्वरूप में अभिनय नहीं किया।
इमर्सन ने "सेल्फ-रिलायेंस" निबंध में लिखा है, "हरेक इंसान में जो शक्ति निवास करती है, वह प्रकृति में नयी है। दूसरा कोई नहीं, सिर्फ वही जानता है कि वह क्या कर सकता है। वह तब तक नहीं जान सकता, जब तक वह कोशिश न कर ले।" इसलिए यह जान लें कि आप अनूठे हैं। इस बात पर खुश हों और प्रकृति ने आपको जो दिया है, उसका अधिकतम लाभ उठाएं।
तीसरा फार्मूला
अगर आपको नीबू मिले, तो आप नीबू का शर्बत बना लें।
मैं एक दिन शिकागो यूनिवर्सिटी गया और वहां के कुलपति रॉबर्ट मैनार्ड हचिन्स से पूछा, "वे किस तरह चिंताओं को दूर रखते हैं।" उन्होंने जवाब दिया, "जब आपको नीबू मिले तो आप नीबू का शर्बत बना लें।"
"अच्छी चीजों का लाभ उठाना जिंदगी में सबसे महžवपूर्ण बात नहीं है। कोई मूर्ख व्यक्ति भी ऎसा कर सकता है। असली महžव की बात तो यह है कि आप अपने विपरीत हालातों से लाभ उठा सकें। इस काम में बुद्धि की जरूरत होती है और इसी से मूर्ख और समझदार के बीच का फर्क समझ आता है।"
न्यूयार्क में कक्षाएं चलाने के दौरान मैंने यह पाया कि बहुत से लोग मात्र इस बात का अफसोस मनाते हैं कि कॉलेज शिक्षा के बगैर जीवन में सफलता की संभावना कम होती है। मैं जानता हूं कि यह पूरी तरह सच नहीं है। इसलिए मैं अपने विद्यार्थियों को ऎसे इंसान की कहानी सुनाता हूं, जिसने कभी प्रारंभिक शिक्षा भी पूरी नहीं की। वह बेहद गरीबी में पला-बढ़ा। जब उसके पिता मरे, उसके पिता के दोस्तों को चंदा इकटा करके उनके कफन का इंतजाम करना पड़ा। उसके पिता के मरने के बाद उसकी मां छाता बनाने वाली फैक्ट्री में दस घंटे नौकरी करती। इन परिस्थितियों में पला यह लड़का राजनीति में आया और तीस साल का होने से पहले न्यूयार्क राज्य विधानसभा के लिए चुन लिया गया। परन्तु वह इस जिम्मेदारी के लिए कतई तैयार नहीं था। उसने मुझे बताया कि दरअसल उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि माजरा क्या है। उसने उन लंबे, जटिल विधेयकों का अध्ययन करने की कोशिश की, जिस पर उसे वोट देना था। परन्तु जहां तक उसका सवाल था, उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ता था। वह इतना ज्यादा हताश हो गया कि उसने मुझे बताया, "अगर उसे अपनी मां के सामने हार मानने में शर्म नहीं आई होती तो उसने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया होता।" उसने फैसला लिया कि वह हर दिन सोलह घंटे पढ़ेगा और अपने अज्ञान के नीबू से ज्ञान के नीबू का शर्बत बनाएगा। ऎसा करके उसने स्वयं को स्थानीय राजनेता से राष्ट्रीय स्तर का नेता बना लिया। वह इतना लोकप्रिय हुआ कि "द न्यूयार्क टाइम्स" ने उसे "न्यूयार्क के सर्वप्रिय नागरिक " का खिताब दिया।
मैं अलस्मिथ के बारे में बात कर रहा हूं। वे चार बार न्यूयार्क के गवर्नर चुने गए। उस समय यह एक रिकॉर्ड था, जो उनसे पहले कभी किसी व्यक्ति ने नहीं बनाया था। छह शीर्ष विश्वविद्यालयों ने, जिनमें कोलंबिया और हार्वर्ड भी शçामल थे, इस इंसान को मानद उपाधियों से विभूषित किया, जो कभी अपनी प्रारंभिक शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाया था।
अलस्मिथ ने मुझे बताया कि इनमें से कोई चीज क भी नहीं हुई होती अगर उन्होंने हर दिन सोलह घंटे की कड़ी मेहनत नहीं की होती। इसी से वे अपनी नकारात्मक स्थितियों को सकारात्मक अनुभव में बदल सके। "यही जीवन हैक्" नहीं यह जीवन नहीं है। यह जीवन से अधिक है। यह विजयी जीवन है। सुख-शांति का मानसिक रवैया विकसित करने के लिए हमें इस नियम को आत्मसात कर लेना चाहिए।
चौथा फार्मूला
खुद से पूछें, "बुरे से बुरा क्या हो सकता है।"
विलिस एच. कैरियर एक प्रतिभाशाली इंजीनियर थे, जिन्होंने एयर-कंडीशनिंग उद्योग शुरू किया और जो न्यूयार्क में विश्वप्रसिद्ध कैरियर कॉरपोरेशन के प्रमुख थे। चिंता को सुलझाने के लिए इतनी बढि़या तकनीक मैंने बहुत कम सुनी है। कैरियर ने मुझे जो बताया, वह इस प्रकार है-
"मैं न्यूयार्क से बफैलो फोर्ज कंपनी मे काम करता था। मुझे मिसूरी में लाखों डॉलर के कारखाने में गैस साफ करने की मशीन लगाने का काम सौंपा गया। गैस साफ करने का यह तरीका नया था इसलिए मेरे काम में अप्रत्याशित कठिनाईयां आई। मशीन काम करने लगी थी, पर उस तरह नहीं जिस तरह की हमने गारंटी दी थी। साथ में हमें 20 हजार डॉलर का घाटा भी हो रहा था। मैं अपनी इस असफलता से स्तब्ध था। कुछ समय तक तो मैं इतना चिंतित रहा कि मेरी नींद उड़ गई। आखिरकार मुझे एक सीधी सी बात समझ में आ गई कि चिंता करने से मुझे कोई फायदा नहीं होने वाला। मैंने बिना चिंता किए समस्या का हल ढूंढने का रास्ता निकाला। मैंने तीन कदम उठाए।"
पहला कदम- मैंने बिना डरे, ईमानदारी से स्थिति का विश्लेषण किया और अनुमान लगाया कि इस असफलता के परिणामस्वरूप मेरे साथ बुरे से बुरा क्या हो सकता है।
दूसरा कदम- बुरे से बुरे परिणामों का अनुमान लगाने के बाद आवश्यकता पड़ने पर इसे स्वीकार करने के लिए मैंने खुद को तैयार किया।
"बुरी से बुरी स्थिति का अनुमान लगाने और जरूरत पड़ने पर इसे स्वीकार करने के बाद एक महžवपूर्ण बात हुई। मैं तत्काल शांत हो गया और काफी दिनों बाद मैंने पहली बार राहत की सांस ली।"
तीसरा कदम- इसके बाद मैंने अपना पूरा समय और ऊर्जा शांति के साथ इस काम में लगाई कि उन बुरे से बुरे परिणामों को कैसे सुधारा जाए जिन्हें मानसिक रूप से मैंने पहले ही स्वीकार कर लिया था।
मैंने अब ऎसे तरीके खोजने शुरू किए, जिनसे मैं अपनी असफलता को सफलता में बदल सकता था और 20 हजार डॉलर के घाटे को कम कर सकता था। इसके लिए मैंने कई परीक्षण किए और अंत में इस नतीजे पर पहुंचा कि अगर हम एक अतिरिक्त यंत्र खरीदने में पांच हजार डॉलर और खर्च करें, तो हमारी समस्या सुलझ सकती है। हमने ऎसा ही किया। नतीजा, हमारी कंपनी को 20 हजार डॉलर का घाटा होने के बजाए 15 हजार डॉलर का फायदा हो गया।
कैरियर ने आगे कहा, "अगर मैं चिंता करता रहता तो शायद यह कभी नहीं कर पाता, क्योंकि चिंता के साथ बहुत बुरी बात यह है कि यह हमारी एकाग्रता की शक्ति को खत्म कर देती है। हम निर्णय ले पाने की शक्ति खो देते हैं। परन्तु जब हम बुरे से बुरे परिणाम का सामना करने के लिए खुद को विवश करते हैं और उसे मानसिक रूप से स्वीकार कर लेते हैं, तो हम इस स्थिति में आ जाते हैं कि अपनी समस्या पर पूरी एकाग्रता से विचार कर उसे हल कर सकें।"
चिंताजनक स्थितियों को सुलझाने के जादुई टिप्स
- व्यस्त रहें। चिंतित आदमी को पूरी तरह से काम में डूब जाना चाहिए, वरना वह निराशा में मुरझा जाएगा।
- दुखी होने का कारण यह है कि आपके पास यह चिंता करने की फुरसत हो कि आप सुखी हैं या नहीं।
- अपने आपको ऎसी छेाटी-छोटी बातों से विचलित होने की अनुमति नहीं दें, जिन्हें हमें नजरअंदाज कर देना चाहिए।
- खुशी के विचार सोचें, खुशी का अभिनय करें और धीरे-धीरे आप खुशी का अनुभव करने लगेंगे।
- अपनी नियामतें गिनें, कष्ट नहीं।
- अपने दुश्मन के लिए नफरत की भट्टी को इतनी तेज नहीं करें कि आप खुद भी उसमें जल जाएं।
- हर दिन एक अच्छा काम करें, जिससे किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाए।

Monday 3 August 2009

नेल पॉलिश-राशि अनुसार


ज्योतिष में रंगों का विशेष महžव बताया गया है। राशि अनुसार अनुकूल रंगों के प्रयोग से संबंधित ग्रह की अनुकूलता में वृद्धि होती है। चीनी ज्योतिष के अनुसार भी अलग-अलग रंगों की प्रवृत्ति अलग-अलग होने के कारण मानव की प्रवृत्ति पर असर करते हैं। शरीर के लिए भी अनुकूल रंगों के प्रयोग करने से सकारात्मक ऊर्जा "ची" को संतुलित कर समन्वय किया जा सकता है। इससे सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। इसी क्रम में महिलाओं द्वारा प्रयोग की जाने वाली नाखून पॉलिश का रंग यदि उनकी राशि के अनुरूप हो तो संबंधित राशि स्वामी के कारक में वृद्धि तथा शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

मेष राशि- मेष राशि की महिलाएं लालिमायुक्त, सफेद, क्रीमी तथा मेहरून रंग की नेल पॉलिश प्रयोग में लाएं।
वृष राशि- लाल, सफेद, गेहूंआ या गुलाबी रंग या इनसे मिश्रित रंगों की नेल पॉलिश लगाएं।
मिथुन- आपके लिए हरी, फिरोजी, सुनहरा सफेद या सफेद रंग की नेल पॉलिश उपयुक्त रहेगी।
कर्क- श्वेत व लाल या इनसे मिश्रित रंग अथवा लालिमायुक्त सफेद रंग की नेल पॉलिश का प्रयोग उपयोगी रहेगा।
सिंह- गुलाबी, सफेद, गेरूआ, फिरोजी तथा लालिमायुक्त सफेद रंग उपयुक्त है।
कन्या- आप हरे, फिरोजी व सफेद रंग की नेल पॉलिश लगाएं।
तुला- जामुनी, सफेद, गुलाबी, नीली, ऑफ व्हाइट एवं आसमानी रंग की नेल पॉलिश अनुकूल रहेगी।
वृश्चिक- सुनहरी सफेद, मेहरून, गेरूआ, लाल, चमकीली गुलाबी या इन रंगों से मिश्रित रंग की नेल पॉलिश लगाएं।
धनु- पीला, सुनहरा, चमकदार सफेद, गुलाबी या लालिमायुक्त पीले रंग की पॉलिश लगाएं।
मकर- सफेद, चमकीला सफेद, हल्का सुनहरी, मोरपंखी, बैंगनी तथा आसमानी रंग की नेल पॉलिश उपयुक्त है।
कुंभ- जामुनी, नीला, बैंगनी, आसमानी तथा चमकीला सफेद रंग उत्तम रहेगा।
मीन- पीला, सुनहरा, सफेद, बसंती रंगों का प्रयोग करें। सदा अनुकूल प्रभाव देंगे।
ऊपर बताए गए रंग राशि स्वामी तथा उनके मित्र ग्रहों के रंगों के अनुकूल हैं।