Monday 5 October 2009

इम्यूनिटी बढ़ाए आंवला और जिंक


सर्दी जुकाम दुनिया का सबसे आम रोग है और इससे छुटकारा पाने के तरीके भी सामान्य ही हैं। लेकिन जितनी अवधि तक यह रोग रहता है, हमें परेशान किए रहता है। अभी तक मानव समाज इसका कोई सटीक हल नहीं पा सका है। 12वीं सदी के चिकन सूप से लेकर आधुनिक जमाने के एंटीहिस्टामीन्स तक हमने सब आजमा लिए हैं। लेकिन जिसे खाते ही जुकाम छूमंतर हो जाए वह नुस्खा अभी तक हमें हासिल नहीं हो सका है।आधुनिक दवाओं में दर्द एवं ज्वर निवारक हैं, बंद नाक को खोलने वाली औषधियां हैं। खांसी को बंद करने वाले सिरप हैं, एंटीहिस्टामींस हैं। ये सभी तरीके कुछ हद तक कामयाब हुए हैं, लेकिन पूरी सफलता पाने में कोई काम नहीं आया। सामान्य सर्दी जुकाम होने के बाद उससे निजात पाने के लिए तो तरीके ढूंढ़े गए हैं, लेकिन इसकी रोकथाम के तरीकों को विकसित करने पर ध्यान कम ही दिया गया है। हालांकि आयुर्वेद जैसी प्राचीन परंपरा में रोकथाम पर ध्यान दिया गया है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता
आयुर्वेद हमें बताता है कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बना कर खांसी, सर्दी, खराब गले की समस्या से ठीक तरीके से निपटा जा सकता है। दूसरी ओर खांसी-जुकाम की आधुनिक दवाएं इस रोग से मुक्ति तो नहीं दे पातीं, किंतु इसके लक्षणों का इलाज करने में कारगर सिद्ध हुई हैं। इसलिए सर्दी जुकाम से निपटने के लिए हमें बहुविध दृष्टिकोण अपनाना होगा यानी इलाज की नई दवाओं के साथ-साथ रोकथाम के पुराने तरीकों को भी मिलाना होगा। इन दोनों को एक करने के लिए हमें बहुत ध्यान से काम करना होगा।

रोकथाम के पुराने तौर तरीके
- आंवला बहुत महžवपूर्ण है। आंवले को खांसी, सर्दी और श्वसनप्रणाली के अन्य संक्रमणों के उपचार हेतु प्रयोग किया जाता है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। आंवले में संतरे के मुकाबले 20 गुणा विटामिन सी होता है। सेब के मुकाबले आंवले में 3 गुणा अधिक प्रोटीन और 160 गुणा अधिक एस्कॉर्बिक एसिड होता है। आंवले में बहुत से खनिजोंऔर अमीनोएसिड की उच्च मात्रा होती है।
- अदरक की चाय बुखार को तोड़ती है और नाक, गले और फेफड़ों में जमा बलगम को हटाती है। यदि आप बेहद अधिक सर्दी जुकाम की स्थिति से गुजर रहे हैं ,तो दो चम्मच ताजा अदरक लेकर 2 कप पानी में डालें, इसको 30 मिनट तक धीमी आंच पर उबालें, हर दो घंटे बाद इस गुणकारी चाय का आनंद लें।
- सर्दी जुकाम में चिकन और सब्जियों का सूप बड़ा लाभकारी होता है। यदि आप अपने सूप में काली मिर्च मिला लें तो न केवल आपको कई प्रकार की पीड़ाओं से राहत मिलेगी बल्कि यदि बुखार है तो वह भी कम होगा।
- हर्बल चाय ऎसे में लाभकारी होती है। चंद्रगंधा की चाय या नीबू अथवा अदरक की चाय राहत प्रदान करती है। लहसुन भी जुकाम के इलाज में सहायक है।
- गर्म और चटपटी जड़ी बूटियां जैसे काली मिर्च, सूखी अदरक या चित्रक खांसी और सर्दी में फायदेमंद होती हैं।

आधुनिक उपचार
- जिंक ऎसिटेट एवं जिंक ग्लूकोनेट का प्रयोग नेजल स्प्रे और नेजल जैल में किया जाता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा करने की इसकी क्षमता के चलते इसका इस्तेमाल जुकाम ठीक करने वाली गोलियों में किया जाता है। हाल में हुए एक अध्ययन के परिणामों से मालूम चला कि जिंक की खुराक सर्दी जुकाम की अवधि को कम करती है। इस अध्ययन में जुकाम ग्रस्त लोगों को मीठी चूसने वाली गोलियों में जिंक को संयोजित करके दिया गया। नतीजे में पाया गया कि इन लोगों को जुकाम कम समय तक रहा, उन लोगों की तुलना में जिन्होंने जिंक का सेवन नहीं किया। वर्कज से हमें जिंक की पर्याप्त मात्रा मिल जाती है।
- खांसी के सिरप, गले के स्प्रे या ओटीसी पेन/कोल्ड दवाएं प्रयोग करें। साथ में गुनगुने नमकीन पानी का गरारा करें, खूब पानी पिएं और पूरा आराम करें।
- बंद नाक खोलने के लिए नेजल ड्रॉप्स प्रयोग करें या बाम मिलाकर गर्म पानी की भाप लें।
- अमरीकन लंग्स एसोसिएशन सलाह देती है कि कॉफी,
चाय, कोला पेयों से परहेज करें। शराब से भी दूर रहें। इन सभी चीजों से शरीर में पानी की कमी हो जाती है।
- पारंपरिक उपचारों और आधुनिक दवाओं दोनों का संयोजन करता है खांसी जुकाम में काम।
- सर्दी खांसी जुकाम से निपटने के लिए हमारे पास कोई एक सटीक रामबाण औषधि नहीं है। इसलिए हमें इन रोगों के निपटने के लिए बहुविध योजना अपनानी होगी। जिंक और आंवले का संयोजन बहुत कारगर है।

आंवला बरसों से विटामिन सी का सर्वोत्तम स्रोत रहा है । वैज्ञानिक आधार पर सिद्ध हो चुका है कि जिंक रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इन दोनों के सेवन से शरीर का सुरक्षा तंत्र इतना मजबूत हो जाता है कि रोगाणु अधिक समय तक हमें प्रभावित नहीं
कर पाते। इस प्रकार बदलते मौसम के इन सामान्य संक्रमणों को पछाड़ने में और हमें फिट रखने में पुराने और नए तरीकों का सम्मिश्रण सबसे सटीक साबित होता है। इन दिनों आंवले और जिंक की खुराक लेने के लिए आप प्रतिदिन एक वर्कज का सेवन कर सकते हैं।

Thursday 1 October 2009

अंगुलियां बताए भविष्य


भविष्य पुराण के अनुसार जिनकी अंगुलियों के बीच छिद्र होता है, उन्हें आमतौर पर धन की तंगी रहती है। जिन लोगों की अंगुलियां आपस में सटी हुई होती हैं वे व्यक्ति धनी होते हैं। वरूण पुराण के अनुसार सीधी अंगुलियां शुभ एवं दीर्घायुकारक होती है।

- पतली अंगुलियां तीव्र स्मरण शक्ति का संकेत करती हंै।
- मोटी अंगुलियां धन के अभाव का संकेत करती है।
- चपटी अंगुलियां किसी के अधीन होकर कार्य करने की द्योतक मानी जाती हैं।

- जिन अंगुलियों के अग्रभाग नुकीले होते हैं ऎसे व्यक्ति दया, प्रेम, करूणावान होते हैं और कलाकार, संगीतकार होते हैं।

- चपटी अंगुलियों वाले व्यक्ति आत्मविश्वासी, परिश्रमी, लगनशील होते हैं। कार्यकुशल ऎसे व्यक्ति व्यवस्थित जीवन जीने वाले होते हैं।

- नुकीली अंगुलियों वाले व्यक्ति भावुक होते हैं। इनमें आत्मविश्वास की कमी पाई जाती है। इनकी जिंदगी में उतार-चढ़ाव बहुत आते हैं। इनके विचार तथा कल्पनाएं सुंदर होती हैं।

- वर्गाकार अंगुलियों वाले व्यक्ति दूरदर्शी, व्यवस्थित जीवन व्यतीत करने वाले, अनुशासन प्रिय होते हैं। आत्मविश्वास से भरे हुए ऎसे व्यक्ति परिश्रमी होते हैं।

Monday 14 September 2009

रोने से बढ़ती है आयु


आंखों से आंसू बहाने वाला अर्थात रोने वाला व्यक्ति दीर्घायु होता है तथा उसके चेहरे एवं त्वचा में निखार भी आता है, जिससे वह लंबे समय तक युवा दिखता है, लेकिन यह तभी संभव होता है जब किसी दुख या अन्य कारणों से वास्तविक आंसू निकलते हैं। विभिन्न अवस्थाओं में निकलने वाले आंसुओं में भिन्नता रहती है। फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के सुप्रसिद्ध अनुसंधानकर्ता एवं नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. जेम्स ने अपने लंबे अनुसंधान के दौरान पाया कि रोने से अंदर की घुटन और तड़प आंसुओं के रू प में बाहर आ जाती है और व्यक्ति खुद को हल्का महसूस करता है। यही वजह है कि महिलाएं पुरूषों की अपेक्षा अधिक सुंदर, युवा एवं दीर्घायु दिखाई देती है क्योंकि पुरूषों की अपेक्षा प्राय: वे अधिक रोती हैं।

Wednesday 9 September 2009

Patrika – All set to conquer the land of RATLAM

Over a year ago when Patrika strongly entered in Bhopal & Indore and made a huge leap over all the other players in Madhya Pradesh, Patrika strategically went to Ujjain with amazing response. Now its all set to conquer the land of 'Ratlam', yet another important city in M.P.

Within a year Patrika connected with readers through several social initiatives like "Amritam Jalam", "Vote 4 Vote" and an "Evening with Patrika" program. Beside this ,Patrika organized a lot of Public fairs & Exhibitions which received a huge response from general public as well as from advertisers.

Patrika is a fast emerging media group marching ahead as a leading media conglomerate in India. Patrika’s legacy is built upon its fearless, unique and independent journalistic pursuits, which has been carried as a motto right from its inception. It is the No. 1 choice of the Hindi readers of Rajasthan, Gujarat, Karnataka and Tamilnadu. At present it is published out of six states in India. The total readership of Patrika is 1 crore 40 lakh and 51 thousand readers (IRS 09).
The Print Industry has witnessed a sea change in its Newspaper readership trend giving a strong sense of fast occuring change in the reader's habit & want for Quality Content due to Patrika's strong presence. After demolishing the a 50 year old monopoly in MP's 2 strongest forts, Bhopal & Indore, Patrika is all set to conquer the hearts of people in Ujjain & Ratlam. In just six months of launching patrika move to Expand to Ujjain & now to Ratlam shorty after 3 weeks of Ujjain launch, will certainly adds another feather in its cap.

Currently, Patrika enjoys a big lead over the rest of the players in Bhopal and Indore; in fact its readership is more than the numbers of both the 3rd and 4th major player in the state put together. Spreading its wings to important cities of Ujjain & Ratlam will further add strength to its wings .
With Patrika entering Ratlam, it is seen as a milestone step in its journey to provide Quality News & truth to the people of M.P.


National Head Marketing, Dr. Arvind Kalia states, “It is truly a great moment for Patrika team. After an amazing success story in Bhopal, Indore & Ujjain, we are now entering another popular city Ratlam, which is yet another important location in M.P and has great strategic importance.
Deputy Editor of Patrika Group, Mr. Bhuwanesh Jain states “Our entry in Ratlam, just few weeks after entering Ujjain is yet another milestone in our endeavor to fulfill the commitment to our readers. We will do our best to enlighten the journalistic values as we have been doing over the past 50 years. We are committed to the welfare of the society.


Readers can visit patrika.com to get live news updates from Madhya Pradesh and the rest of India.

Tuesday 8 September 2009

आठ अजूबे इस दुनिया में

हमने वही जानी पहचानी लोकतांत्रिक पद्धति का सहारा लिया। हमने समाज के कुछ लोग चुने और उनसे जाकर पूछा-आपकी नजर में ये आठ अजूबे हैं क्या। उनके जवाब कुछ ऎसे रहे...
1. टेलीविजन
अपने महादेश का पहला अजूबा है "टेलीविजन"। सारा देश इससे चिपका रहता है। बच्चे टीवी के चक्कर में खाना भूल जाते हैं और बड़े सोना। ऎसे-ऎसे दृश्य दिखाए जाते हैं कि बेटा बाप से ज्यादा ज्ञानी हो जाता है। एक कहावत है "करेला और नीम चढ़ा।" अजूबे में अजूबा है अपने न्यूज चैनल। क्या हाहाकारी प्रोग्राम आ रहे हैं- नाचती नागिन और नाग, भूत बंगले का रहस्य, पीपल के पेड़ का भूत, पिछले जनम की दास्तान। सामाजिक सीरियल देख बच्चे अपनी मम्मी से सवाल करते हैं-मम्मी-मम्मी आप भी प्रेरणा आंटी की तरह नई-नई शादी क्यों नहीं करतीं।

2. मोबाइल
हमारे ज्ञानी जजों ने दूसरा अजूबा करार दिया है "मोबाइल" को। जिसे देखो हाथ मे दबाए घूम रहा है। एक घर में पांच मैंबर और मोबाइल। खा रहे हैं तो बज रहा है। सो रहे हैं तो बज रहा है। ससुरा प्रेम करते वक्त भी चुप नहीं रहता। पल भर में सारा नशा काफूर। मोबाइल ने झूठ बोलना सीखा दिया। पति महाशय अपनी पुरानी माशूका से मिलने उसके घर जा रहे हैं और पत्नी को कह रहे हैं मंदिर जा रहा हूं, थोड़ी देर हो जाएगी। युवक व युवतियां एक-दूसरे को एसएमएस किए जा रहे हैं। महान गायक कौन करो एसएमएस। सबसे लोकप्रिय अभिनेत्री कौन करो एसएमएस। धोनी को लंबे बाल रखने चाहिए या काटने चाहिए करो एसएमएस।

3. हिंदी फिल्में
समकालीन जीवन का तीसरा अजूबा है हमारी "हिंंदी फिल्में"। जिंदगी से दूर। यथार्थ से परे। सपनों की दुनिया। पता ही नहीं चलता कौन किससे प्रेम कर रहा है। मेले में बिछड़े दो भाई अब ऑस्ट्रेलिया में जाकर दोस्त बन गए। नायिकाएं वैंप बन रही हैं। एक सीरियल किसर पैदा हो गया। फलां फिल्म में फलां हिरोइन ने कितने चुंबन दिए। फलां ससुर ने फलां बहू के किसिंग दृश्य फिल्म से हटवाए। गायक नायक बन रहे हैं नायक गायक। नायिकाएं एक गाने में आकर मटक जाती हैं और डेढ़ करोड़ झटक कर ले जाती हैं। पुरानी बोतलों में नई शराब भरी जा रही है।

4. क्रिकेट
चौथा अजूबा है "क्रिकेट"। बड़े बूढ़े कहते थे अंगे्रज मर गए औलाद छोड़ गए। हम कहते हैं फिरंगी चले गए क्रिकेट पटक गए। सारा देश क्रिकेट का दीवाना है। बिल्ली के भाग्य से सन् तिरासी में छींका क्या फूटा कि हम अपने को फन्ने खां समझने लग गए। जिसे देखो वहीं गेंद-बल्ला चला रहा है। कभी-कभी पदाधिकारी जूते भी चला देते हैं। अरबों की आमदनी सचिन की कमर में दर्द हो जाता है, तो सारा देश बैड रेस्ट करने लगता है। गांगुली के लिए आंदोलन होता है। धोनी पर लड़कियां टूट पड़ती हैं। खूब माल बंटता है। जिन्हें माल नहीं मिलता, वे जूतियों में दाल बांटने लगते हैं।

5. एनजीओ
हमारे दश का पांचवा अजूबा है "एनजीओ"। "कर सेवा और खा मेवा" यह वाक्य ऋषियों ने बनाया था। आज के एनजीओ का सूत्र वाक्य है "सेवा दिखा-मेवा कमा।" सेवा करने में क्या रखा है, बस सेवा करते दिखाना जरूरी है। सरकारी अनुदान खाओ मजे उड़ाओ। बाबू के पांच सैंकड़ा, छोटे अफसर के सात सैंकड़ा, अफसर के पंद्रह सैंकड़ा। दस सैंकड़ा में कौवे, कुत्ते और गौ माता। अगर सौ में से सैंतीस फिसदी दान करने का कलेजा है, तो बेटा तेरे एनजीओ को ऊपर वाला भी अनुदान देने से इनकार नहीं कर सकता। हालांकि वह तो भाव का भूखा है। प्रसादी में ही राजी हो जाता है।

6. राजनीति
छठा अजूबा है "पॉलिटिक्स"। आज हमारे देश में चपरासी बनने के लिए भी मिडिल पास होना चाहिए। पर मंत्री बनने के लिए न पढ़ाई की जरूरत है न लिखाई की। जिसके हाथ में लाठी वही राजनीति की भैंस हांकने लग जाता है। मंत्री का बेटा मंत्री बनना तय है। जनता का बेटा जूतियां चटखाता घूमता है। नेता का पुत्र पैदा होते ही सरकारी कार पा जाता है। कहने वाले कहते हैं कि मेरे देश का नेता सौ में से नब्बे बेईमान, फिर भी मेरा देश अपने को कहता है महान।

7. हंसी
आज के युग का सातवां अजूबा है "हंसी"। यह खबर पढ़कर गश आ गया कि सौ चुटकुलों ने एक हजार करोड़ का कारोबार कर डाला। यह सुनते ही हमारा मन हुआ कि सारे पुस्तकालय फूंक डालें। किताबें जला दें। डिग्रियां फाड़ दें। बस चुटकुले याद करें। हंसे और हंसाए। हंसी का यह आलम हो गया कि महाशय जुगाली चंद्रजी ने अपनी वसीयत में लिखा कि मेरे बारहवें पर सिद्धू, शेखर और पेरिजाद कोला के संग बारह हंसोड़ों के बुलाना और उन्हें श्राद्ध खिलाना।

8. अपनी जोड़ी
तो जनाब ये तो हुए सात अजूबे। पर आठवां अजूबा है "अपनी जोड़ी"। अपनी जोड़ी मे कोई भी दो हो सकते हैं जैसे मियां-बीवी, सास-बहू, बाप-बेटा, दोस्त-दोस्त, प्रेमी-प्रमिका, लड़का-लड़की, नेता-कुर्सी, काला धंधा-पूंजी अर्थात जो भी दो चीजें मिल कर मुनाफा कमा लें, वहीं आठवां अजूबा है। ज्ञानीजनों हमें माफ करना। ये अजूबे हमारे दिमाग की उपज नहीं हैं। हमने तो जैसा सुना वैसा लिखा। अगर आपको "आरती" उतारनी हो, तो उन लोगों की उतारना जिनके बारे में हमने अजूबा-कथा के प्रारंभ में बताया था।

Saturday 29 August 2009

योग : आंखों के लिए आसन


दिनभर के काम से आंखों का थक जाना आम बात है, इससे हमें परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। इससे निजात पाने के लिए आइए कुछ अभ्यास सीख लें।

पॉमिंग : किसी भी आरामदायक स्थिति में बैठ जाएं और कुछ पल के लिए आंखें बंद कर लें। दोनों हथेलियों को आपस में तेजी से रगड़ें, ताकि वे गरम हो जाएं। उसके बाद दोनों हथेलियों को आंखों की पलकों पर रखें और हाथ की ऊर्जा को बंद आंखों से धारण करें। कुछ ही पल में आप आराम महसूस करेंगे। जब तक हथेलियों की गर्मी को महसूस करें, तब तक इसी अवस्था में रूकें। उसके बाद हथेलियों को हटा लीजिए। आंखें बंद ही रखें और इस क्रिया को तीन बार दोहराएं।

विशेष : अंगुलियों से आंखों पर दबाव न डालें। सिर्फ हथेलियों के बीच के भाग से ही आंखों को ढकें।

लाभ : जब भी आप पढ़ाई करते समय, टेलीविजन देखने, कंप्यूटर पर काम करने या किसी भी कारण से आंखों में तनाव महसूस करें, तब इस क्रिया का अभ्यास जरूर करें।

लंबाई नहीं बढ़े तो!


क्या आपक ा बच्चा अपने हम उम्र बच्चों से लंबाई में छोटा है यदि हां, तो अभी से चेत जाइए। हो सकता आपके बच्चे की लंबाई "सीलिएक डिजीज" की वजह से नहीं बढ़ रही हो। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज [एम्स] नई दिल्ली में हुए एक अनुसंधान के निष्कर्षों से पता चला है कि बच्चों की लंबाई नहीं बढ़ने का एक प्रमुख कारण सीलिएक डिजीज है।

क्या है सीलिएक
सीलिएक यानी गेहूं से एलर्जी की बीमारी। दरअसल सीलिएक रोग में गेहूं से एलर्जी के कारण उसमें पाए जाने वाले "ग्लूटेन" प्रोटीन का शरीर में पाचन नहीं हो पाता और मरीज की छोटी आंत की विलाई नष्ट होने लगती है। गेहूं अपने आप में बुरा नहीं है, लेकिन गेहूं में पाए जाने वाले कुछ तžवों [प्रोटीन] से कई लोगों को एलर्जी हो जाती है, तो उनको सीलिएक रोग हो जाता है। यह ठीक वैसा ही है, जैसे किसी व्यक्ति को किसी दूसरे तžवों [चीजों] से एलर्जी हो जाती है और वह अस्थमा ग्रस्त हो जाता है। प्रभावित व्यक्ति में दस्त, पेट फूलना, सर्दी जुकाम, रक्त की कमी, अस्थमा, शारीरिक वृद्धि रूक जाना जैसी शिकायतें रहने लगती हैं।

कौन प्रभावित होता है
वैसे तो सीलिएक डिजीज किसी भी उम्र के मरीजों में पाई जा सकती है, पर सबसे ज्यादा यह बीमारी बच्चों में डायग्नोस की जाती है।

एम्स में शोध
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, नई दिल्ली
में एंडोक्राइनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज्म डिपार्टमेंट के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में पाया कि लंबाई नहीं बढ़ने की शिकायत लेकर आए 100 बच्चों में 18 बच्चों को सीलिएक डिजीज है। पेट के लक्षणों के अलावा इस बीमारी का एक प्रमुख लक्षण है बच्चों की लंबाई नहीं बढ़ना। ऎसा भी संभव है सीलिएक डिजीज से ग्रस्त बच्चों में लंबाई नहीं बढ़ने के अलावा दूसरे कोई लक्षण ही नहीं हों।

अत: ऎसे बच्चे जिनकी लंबाई नहीं बढ़ रही हो एक साधारण ब्लड टेस्ट [टीटीजी] कराकर सीलिएक डिजीज की पहचान की जा सकती है। समय पर सही डायग्नोसिस और उपचार से बच्चों को राहत मिल सकती है।

क्या है उपचार
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. राजेश खड़गावत कहते हैं, "एक बार सीलिएक डिजीज डायग्नोसिस हो जाए, तो गेहूं से बनी हुई चीजें जीवन भर के लिए बंद करनी पड़ती हैं।"

क्या खाएं
चावल, चिवड़ा, मुरमुरा, अरारोट, साबूदाना, मक्का, ज्वार, बाजरा, सिंघाड़े का आटा, कुट्टू का आटा, आलू का आटा, दूध और दूध से घर में बने पदार्थ, मक्खन, घी, मछली, चिकन, अंडा, सभी दालें, सभी फल, सब्जियां, चाय, कॉफी, शहद, रसगुल्ला, घर के बेसन की बनी चीजें, इडली, डोसा, सांभर बड़ा, पॉपकॉर्न, चना [भूंगड़े], चावल के नूडल्स, पेठा इत्यादि।
क्या नहीं खाएं

गेहूं, गेहूं का आटा, मैदा, पूरी, सूजी, सेवइयां, जौ, जई, समोसा, मठरी, पैटीज, ब्ा्रेड, दलिया, बाजार की आइसक्रीम, चॉकलेट, दूध, शैक, बर्फी, जलेबी, सॉस, टॉफी, कस्टर्ड पाउडर, बॉर्नविटा, बूस्ट, गुलाब जामुन, बिस्कुट, प्रोटीन पाउडर, रेडिमेड कॉर्नेफ्लेक्स।

Wednesday 12 August 2009

Patrika - Coming Soon to Ujjain

Few months after Patrika challeged the leading Newspaper in Bhopal & Indore and leads over all the other players in the region, it is now stepping a foot forward in another strategically important city Ujjain.
Madhya Pradesh, the only state where monopoly existed in the Hindi belt of newspaper market has witnessed a sea change. The leader’s 50 years old monopoly has been finally demolished. The recently launched newspaper; Patrika, which comes from the Patrika Group has 5 lakh 75 thousand readers in Bhopal and Indore, this puts it neck to neck with the said leading daily, in just six months of launching. The Expansion to Ujjain will certainly add strength to Patrika’s efforts in becoming the overall leading daily in M.P.
Currently,Patrika enjoys a big lead over the rest of the players in Bhopal and Indore; in fact its readership is more than the numbers of both the 3rd and 4th major player in the state put together.
Elated National Head Marketing, Dr. Arvind Kalia states, “ It is truly a great moment for Patrika team. After an amazing launch in Indore & Bhopal , We are entering Ujjain which is yet another important location in M.P with great strategic importance. When we entered MP an year ago, we came with a commitment that we shall always maintain a high level of quality. I thank the readers and advertisers of MP who have shown their faith in the newspaper & given us the confidence to Expand our wings to Ujjain as well.”
It is interesting to compare what Bhaskar has achieved in 50 years, Patrika has achieved in just 6 months putting the leader in a defending position in Bhopal and Indore. Dainik Bhaskar is already witnessing a continuous decline in its readership of Bhopal and Indore editions, since IRS R2 07. From 20.85 lacs readers in R2 07, the readership has declined by 21% to 16.45 lacs, whilst the ad rates were always sky-high, because of which the CPT for the advertisers rocketed from Re.0.60 in R2 07 to Rs. 1.07 in R1 09 an increase of 78%! Now with Patrika entering Ujjain, it is seen as a milestone step in its journey to Provide Quality News & truth to the people of M.P.
Dr. Kalia says, “Bhopal and Indore together contribute to 74% of the total ad spends on the state of MP,Adding Ujjain to our armour will afurther strenghten our Marketing efforts & strategies in M.P. Patrika is already on the way to capture the major share from advertisers in many sectors. To name a few, for the month of May 09 – Patrika has a 100% ad share of educational clients such as Resonance, FIT JEE, Asia Pacific, IT Bench, Gupta tutorials and many others in Indore. In Bhopal also, Patrika has ad share of more than 50% in segments like real estate, lifestyle, automobile and education..
A very confident & elated Deputy Editor of Patrika Group, Mr. Bhuwanesh Jain states “We at Rajasthan Patrika are strongly committed to our reader’s desire in providing quality news & truth under all circumstances. Our entry in Ujjain is yet another milestone in our endeavor to fulfill the above said commitment to our readers. We are now entering Ujjain and we will do our best to enlighten the journalistic values as we have been doing over the past 50 years. We are committed to provide true news from the roots of the land”.
www.patrika.com

Sunday 9 August 2009

Crime Prevention Begins at home : बच्चों को चाहिए इमोशनल टच


सोलह वर्षीय ब्रेन्डा स्पेन्सर को उसके जन्मदिन पर गिफ्ट के रूप में रायफल मिली। उसने अपने सैन डिएगो स्थित घर के नजदीक एक प्रायमरी स्कूल में बच्चों पर गोलियां चला दीं। दो बच्चों की जान चली गई। नौ घायल हो गए। इस बाबत उससे पूछा गया तो उसका जवाब था मुझे सोमवार पसंद नहीं है। मैंने जो कुछ किया, उससे वह सोमवार जीवन्त हो उठा।

टैक्सास के एलिस काउंटी में गांव की एक सड़क पर दो लाशें पड़ी मिलीं। उनमें से एक चौदह वर्षीय लड़के की थी, जिसे गोली मार दी गई थी। लेकिन, दूसरी लाश एक तेरह वर्षीय लड़की की थी, जिसके साथ बलात्कार करके उसे मार कर लाश को क्षत-विक्षत किया गया था। उस लड़की की लाश से उसका सिर और हाथ गायब थे। हत्यारा बाद में पकड़ा गया, जिसका नाम जेसन मेसी था। मेसी ने तय किया था कि वह ऎसा कुख्यात सीरियल किलर बने जैसा टैक्सास के इतिहास में दूसरा कोई नहीं हुआ। वह जब नौ वर्ष का था तो उसने सबसे पहले एक बिल्ली की हत्या की। बाद में कई कुत्तों और गायों की हत्या की। उसकी डायरी में युवतियों के साथ बलात्कार, हत्याओं और नरभक्षी की कई काल्पनिक कहानियां लिखी मिलीं। वह मानता था कि वह उस मालिक की सेवा कर रहा है, जिसने उसे ज्ञान और शक्तिदी है। उस पर लड़कियों की हत्याएं करने और लाशों को कब्जे में रखने का पागलपन सवार था।

फ्लोरिडा के नौ वर्षीय जेफ्रे बैले ने एक तीन वर्षीय बच्चे को मोटल के तरणताल में गहरे पानी में ले जाकर डुबोया और तरणताल के किनारे कुर्सी लगाकर बैठ गया। वह उसे तब तक देखता रहा, जब तक उसकी जान नहीं चली गई। वह किसी को डूब कर मरते हुए देखना चाहता था। जब उससे पूछा गया तो वह शान से पूरा वृतांत बताता रहा उसने जो कुछ किया उसका उसे लेश-मात्र भी दुख नहीं था।

ये कुछ बच्चों के उदाहरण हैं, जो विकृत मस्तिष्क के थे। ऎसी घटनाओं से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पागलपन केवल वयस्कों में ही नहीं होता। बाल विशेष्ाज्ञों का विश्वास है कि बच्चों में पागलपन निरंतर बढ़ता जा रहा है। एक शोध में इन बच्चों को पागल बच्चे (साइकोपैथ) करार दिया गया है। कहा गया है कि ये बच्चे वयस्क पागलों से भी अधिक खतरनाक हैं। हो सकता है कि ये हत्या जैसा जघन्य अपराध न कर पाएं या उनमें ऎसा अपराध करने का दुस्साहस न हो। लेकिन, वे अपने लाभ के लिए दूसरों का अहित करने, उन्हें धोखा देने और उनका शोषण करना सीख जाते हंै। समझा जाता है कि ऎसे बच्चों में सहानुभूति का वह भाव पनप नहीं पाता, जिसके कारण लोग दूसरे के दुख को महसूस कर पाते है। उनमें इसकी बजाए क्रोध, बेईमानी, घमंड, बेशर्मी और निर्दयता की भावनाएं पैदा होने लगती हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने अमरीका में हत्या के आरोपियों के पिछले पचास वर्षो के इतिहास में से करीब सौ मामले लिए और उनमें से किशोर वय के 19 हत्या के आरोपियों को अध्ययन के लिए छांटा। इससे पता लगा कि जहां वयस्क अपराधी अपराध की वारदात अकेले ही करना पसंद करते हैं, वहीं बच्चे अपने साथियों के सहयोग से जघन्य अपराध को अंजाम देते हैं। पिछले बीस वर्षो में हुई स्कूली हिंसा के बीस मामलों में नेशनल डेंजर एसेसमेंट एसोसिएशन की सीक्रेट सर्विस ने यह पाया कि अपराध करने से पहले बच्चे किसी न किसी को यह बताते रहे हैं कि वे क्या करने जा रहे हैं, ऎसे बच्चों में से आधे का मानसिक संतुलन बिगड़ा हुआ था।

कनाडा के विशेषज्ञ डॉ. डेविड लाइकेन के अनुसार असामाजिक व्यवहार करने वाले अधिकांश बच्चों का विकास मां-बाप के साए में अच्छी तरह नहीं होता। या तो उनके पिता नहीं होते या पिता उनकी सही देखभाल नहीं करते और उनकी माएं भी उन्हें समाज में रहने के तौर-तरीके सिखाने पर ध्यान नहीं देती। लाइकेन ऎसे बच्चों को सोशियोपैथ कहते हैं और उनका मानना है कि उनके सामाजिक जीवन में सुधार कर उनकी संख्या घटाई जा सकती है। उनका कहना है कि अपराध प्रवृत्ति का कारण आनुवांशिक भी होता है। लेकिन, इस तरह मिली आनुवांशिक प्रवृत्तियों को मां-बाप अच्छे लालन-पालन से बदल सकते हैं। उन बच्चों में आनुवांशिकता में मिली अपराध की भावना को निडरता, पहल करने की प्रवृत्ति तथा संवेदनशीलता के गुणों में भी बदला जा सकता है।

यह मां-बाप पर निर्भर करता है और जहां मां-बाप अपने इस दायित्व को निभाने में असफल रहते हंै, वहीं बच्चे हिंसक हो उठते हैं। वे कहते हंै कि अच्छे लालन-पालन से उन्हें बदला जा सकता है। कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि पागल बच्चों के मस्तिष्क में असामान्य हलचलें होती हैं। कुछ परिस्थितियों में उनमें अन्य बच्चों की तुलना में देर से प्रतिक्रिया होती है। जैसे सजा मिलने का भय उनमें सामान्य बच्चों की अपेक्षाकृत कम होता है। उन्हें वे काम करने में ज्यादा मजा आता है, जिनसे उनके नर्वस सिस्टम में उत्तेजना पैदा होती है। बाल विकास के क्षेत्र में कई अनुसंधानकत्ताüओं का विश्वास है कि बच्चे का यदि अपने मां-बाप से भावनात्मक जुड़ाव गहरा हो तो उसके हिंसक होने की आशंकाएं घट जाती हैं। व्हाय वर सन्स टर्न वाइलेंट एंड हाऊ वी केन सेव देम पुस्तक के लेखक डॉ. जेम्स गर्बारिनो का कहना है कि बाल विकास मूलत: सामाजिकता से जुड़ा है।

बच्चों और बाहरी दुनिया के बीच संबंधों में उससे स्नेह करने वाले माता-पिता महत्वपूर्ण कड़ी हंै। बच्चे संबंधों के जरिए ही बाहरी दुनिया से जुड़ पाते हैं। जो बच्चे हत्या जैसे जघन्य अपराध में लिप्त हो जाते हैं, वे दरअसल बाहरी दुनिया से सही ढंग से जुड़ नहीं पाते। बच्चे में अगर क्रोध, प्रतिरोध, अविश्वास, घृणा, संशय के दोष उत्पन्न होते हैं तो इसका कारण यह है कि जन्म के नौ माह में उसका लालन-पालन ढंग से नहीं हुआ। अध्ययन के अनुसार जिन बच्चों का जन्म के बाद पहले नौ माह में लालन-पालन अच्छे ढंग से होता है, वे बाद के जीवन में अधिक प्रतिस्पर्द्घी तथा सामंजस्य का जीवन जीते हैं। अपने जीवन के पहले नौ माह में से भी पहले तीन माह नवजात शिशु अपना संबंध अपने माता-पिता से जोड़ने का प्रयास करता है। कुछ नवजात शिशु सरल होते हैं, जबकि कुछ जटिल प्रकृत्ति के।

माता-पिता को इस संबंध को प्रगाढ़ बनाने के लिए अपनी तरफ से प्रयत्न करने पड़ते हैं। इन आरंभिक माह में बच्चे से संबंध जोड़ना वैसे भी बहुत मुश्किल होता है। एक-दो माह के बच्चे को अगर उसके लालन-पालन के दौरान कई हाथों से गुजरना पड़े तो वह किसी से भी गहरा संबंध नहीं जोड़ पाता। ऎसे बच्चे को जब कोई उठाएगा तो वह उससे आंखें नहीं मिलाता बल्कि उनकी हरकत का प्रतिरोध करेगा। ऎसे बच्चों की माताओं को प्रयत्न करना चाहिए कि जब वे अपने बच्चों को स्तन-पान कराएं तो कोशिश करें कि बच्चा उनसे आंख मिलाते हुए दूध पीए। बच्चे का अपनी मां से जुड़ाव गहरा होता है।

दूध, मांस, फल तथा सब्जियां जिस तरह शरीर के लिए जरूरी हंै, उसी तरह बच्चे को संतुलित अवस्था में भावनात्मक पोषण की भी आवश्यकता है। माता-पिता का यह दायित्व है कि वे बच्चे को समाज से जोडेें और उनमें वे गुण पैदा करें कि वे समाज में बुराइयों की पहचान कर सकें और उनसे दूर रह सकें। अनुसंधानों से यह भी पता लगा है कि बच्चे में गर्भावस्था के दौरान ही हिंसक भाव विकसित होने लगते हैं। नवजात शिशु को संतुलित आहार के साथ संतुलित भावनात्मक पोषण भी मिलना चाहिए। उसके अच्छे चरित्र का निर्माण हो सकेगा।

Saturday 8 August 2009

पाएं खुशियां ही खुशियां

चिंता अच्छे से अच्छे आदमी को बीमार बना सकती है। चिंता को जीतने का सर्वश्रेष्ठ तरीका समस्या का विश्लेषण कर उसके अनुसार हल निकालना है। चिंता के बारे में सोचें, मगर उसे स्वयं पर हावी न होने दें। प्रसिद्ध दार्शनिक और चिंतक डेल कारनेगी ने अपनी पुस्तक "चिंता छोड़ो, सुख से जियो" में चिंता दूर करने के कई कामयाब नुस्खे बताए हैं। इनमें से आपके लिए पेश हैं चुनिंदा फार्मूले।
पहला फार्मूला
इससे पहले की चिंता आपको खत्म करे आप चिंता को खत्म कर दें।
वह रात मुझे याद रहेगी जब मैरियन जे. डगलस ने हमें क्लास में अपनी आप बीती सुनाई। उसने हमें बताया कि कैसे उसके घर में दो हादसे हुए। पहली बार उसकी प्यारी सी पांच साल की बच्ची मर गई और दस माह बाद पैदा हुई एक और लड़की पांच दिन में ही चल बसी।
यह दोहरा हादसा असहनीय था। मैरियन ने कहा, "मैं इसे नहीं झेल पाया। मैं न तो सो पाता, न खा पाता, न ही आराम कर पाता। मेरी हिम्मत टूट चुकी थी और मेरा आत्मविश्वास जवाब दे चुका था। ऎसा लगता था जैसे मेरा शरीर किसी शिकंजे में जकड़ा हो और शिकंजा लगातार कसता जा रहा हो। परन्तु ईश्वर की कृपा से मेरा एक बच्चा जीवित था। मेरा चार साल का पुत्र। उसने मेरी समस्या सुलझा दी। एक दोपहर जब मैं दुख में डूबा बैठा था तो, उसने आकर कहा, "डैडी मेरे लिए बोट बना दो।" उस समय कुछ भी करने का मूड नहीं था। परन्तु मेरा बेटा जिद्दी था। आखिरकार मुझे हार माननी पड़ी। उसकी टॉय बोट बनाने में मुझे तीन घंटे लगे। जब मैंने बोट पूरी बना ली तब जाकर मुझे अहसास हुआ कि दरअसल महीनों की चिंता के बाद इन तीन घंटों में मुझे इतनी शांति और मानसिक राहत मिली थी। इस खोज ने मुझे नींद से जगाया। सोचने पर मजबूर कर दिया। कई महीनों में पहली बार मैं कुछ सोच रहा था। मैंने महसूस किया कि जब हम किसी काम की योजना बनाने और सोचने में व्यस्त हो जाते हैं, तो चिंता करना मुश्किल होता है। मेरे मामले में बोट बनाने के काम ने मेरी चिंता को चारों खाने चित्त कर दिया। इसलिए मैंने फैसला किया कि मैं खुद को व्यस्त रखूंगा।"
"अगली रात को मैं पूरे घर में घूमा और उन कामों की सूची बनाई, जो किए जाने चाहिए थे। दो सप्ताह में मैंने 242 कामों की सूची बना ली। अगले दो साल में मैंने इनमें से ज्यादातर काम पूरे कर दिए। इसके अलावा मैंने अपने जीवन को प्रेरक और दूसरी गतिविधियों में व्यस्त कर दिया। मैं अब इतना व्यस्त हूं कि मुझे चिंता करने के लिए वक्त ही नहीं मिलता।"
व्यस्त रहने जैसे सामान्य कार्य से हमारी चिंता क्यों दूर हो जाती हैक् ऎसा एक नियम के कारण होता है। यह नियम मनोविज्ञान के सबसे मूलभूत नियमों में से एक है। यह नियम है-"कोई भी मानवीय मस्तिष्क, चाहे वह कितना ही प्रतिभाशाली क्यों न हो, एक समय में एक से ज्यादा चीजों के बारे में नहीं सोच सकता।
जॉर्ज बर्नाड शॉ सही थे। उन्होंने अपने एक वाक्य में सब कुछ कह दिया। उनका कहना था,"दुखी होने का रहस्य यह है कि आपके पास यह चिंता करने की फुरसत हो कि आप सुखी हैं या नहीं।" तो इस बारे में सोचने की झंझट ही नहीं पालें। अपने हाथ मलें। कमर कसें और व्यस्त हो जाएं।
दूसरा फार्मूला
याद रखें, आपके जैसा इस दुनिया में कोई नहीं है।
एक बड़ी तेल कंपनी के रोजगार निदेशक पॉल बॉइन्टन से मैंने पूछा कि लोग रोजगार के लिए आवेदन देते समय सबसे बड़ी गलती कौन सी करते हैं। बॉइन्टन हजारों लोगों के इंटरव्यू ले चुके थे और उन्होंने इस विषय पर एक पुस्तक भी लिखी थी। उनका कहना था, "नौकरी के लिए आवेदन देने में लोग सबसे बड़ी गलती यह करते हैं कि वे अपने वास्तविक स्वरूप में नहीं रहते। अपने असली व्यक्तित्व में रहने और पूरी तरह खुलकर बताने के बजाए वे अक्सर ऎसे जवाब देने की कोशिश करते हैं, जो उनके हिसाब से आप सुनना चाहते हैं। परन्तु यह तरीका सफल नहीं होता, क्योंकि कोई भी नकली चीज नहीं चाहता। कोई भी जाली सिक्का नहीं चाहता।"
आप में और मुझमें इस तरह की योग्यताएं हैं, इसलिए इस बात की चिंता करने में एक पल भी बर्बाद न करें कि हम दूसरे लोगों की तरह नहीं हैं। आप इस दुनिया में एकदम अनूठे हैं। जेनेटिक्स विज्ञान हमें बताता है कि आप जो हैं, वह पूरी तरह से आपके पिता के चौबीस और आपकी माता के चौबीस क्रोमोसोम की देन है। हर क्रोमोसोम में दर्जनों से लेकर सैंकड़ों जीन्स हो सकते हैं और कई बार तो एक जीन ही इंसान के पूरे जीवन को बदलने की क्षमता रखता है।
आपके माता-पिता के मिलने और समागम के बाद आपकी तरह का निश्चित इंसान पैदा होने की संभावना तीन लाख बिलियन में से एक थी। दूसरे शब्दों में, अगर आपके तीन लाख बिलियन भाई-बहन होते तो, वे सबके सब आपसे अलग हो सकते थे। क्या यह बात अनुमान पर आधारित है। जी नहीं। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है। जब चार्ली चैप्लिन फिल्मों में आए, तो फिल्म निर्देशकों ने इस बात पर जोर दिया कि चैप्लिन उस युग के एक लोकप्रिय जर्मन कॉमेडियन की नकल करें। परन्तु चार्ली चैप्लिन को तब तक कामयाबी नहीं मिली जब तक उन्होंने अपने असली स्वरूप में अभिनय नहीं किया।
इमर्सन ने "सेल्फ-रिलायेंस" निबंध में लिखा है, "हरेक इंसान में जो शक्ति निवास करती है, वह प्रकृति में नयी है। दूसरा कोई नहीं, सिर्फ वही जानता है कि वह क्या कर सकता है। वह तब तक नहीं जान सकता, जब तक वह कोशिश न कर ले।" इसलिए यह जान लें कि आप अनूठे हैं। इस बात पर खुश हों और प्रकृति ने आपको जो दिया है, उसका अधिकतम लाभ उठाएं।
तीसरा फार्मूला
अगर आपको नीबू मिले, तो आप नीबू का शर्बत बना लें।
मैं एक दिन शिकागो यूनिवर्सिटी गया और वहां के कुलपति रॉबर्ट मैनार्ड हचिन्स से पूछा, "वे किस तरह चिंताओं को दूर रखते हैं।" उन्होंने जवाब दिया, "जब आपको नीबू मिले तो आप नीबू का शर्बत बना लें।"
"अच्छी चीजों का लाभ उठाना जिंदगी में सबसे महžवपूर्ण बात नहीं है। कोई मूर्ख व्यक्ति भी ऎसा कर सकता है। असली महžव की बात तो यह है कि आप अपने विपरीत हालातों से लाभ उठा सकें। इस काम में बुद्धि की जरूरत होती है और इसी से मूर्ख और समझदार के बीच का फर्क समझ आता है।"
न्यूयार्क में कक्षाएं चलाने के दौरान मैंने यह पाया कि बहुत से लोग मात्र इस बात का अफसोस मनाते हैं कि कॉलेज शिक्षा के बगैर जीवन में सफलता की संभावना कम होती है। मैं जानता हूं कि यह पूरी तरह सच नहीं है। इसलिए मैं अपने विद्यार्थियों को ऎसे इंसान की कहानी सुनाता हूं, जिसने कभी प्रारंभिक शिक्षा भी पूरी नहीं की। वह बेहद गरीबी में पला-बढ़ा। जब उसके पिता मरे, उसके पिता के दोस्तों को चंदा इकटा करके उनके कफन का इंतजाम करना पड़ा। उसके पिता के मरने के बाद उसकी मां छाता बनाने वाली फैक्ट्री में दस घंटे नौकरी करती। इन परिस्थितियों में पला यह लड़का राजनीति में आया और तीस साल का होने से पहले न्यूयार्क राज्य विधानसभा के लिए चुन लिया गया। परन्तु वह इस जिम्मेदारी के लिए कतई तैयार नहीं था। उसने मुझे बताया कि दरअसल उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि माजरा क्या है। उसने उन लंबे, जटिल विधेयकों का अध्ययन करने की कोशिश की, जिस पर उसे वोट देना था। परन्तु जहां तक उसका सवाल था, उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ता था। वह इतना ज्यादा हताश हो गया कि उसने मुझे बताया, "अगर उसे अपनी मां के सामने हार मानने में शर्म नहीं आई होती तो उसने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया होता।" उसने फैसला लिया कि वह हर दिन सोलह घंटे पढ़ेगा और अपने अज्ञान के नीबू से ज्ञान के नीबू का शर्बत बनाएगा। ऎसा करके उसने स्वयं को स्थानीय राजनेता से राष्ट्रीय स्तर का नेता बना लिया। वह इतना लोकप्रिय हुआ कि "द न्यूयार्क टाइम्स" ने उसे "न्यूयार्क के सर्वप्रिय नागरिक " का खिताब दिया।
मैं अलस्मिथ के बारे में बात कर रहा हूं। वे चार बार न्यूयार्क के गवर्नर चुने गए। उस समय यह एक रिकॉर्ड था, जो उनसे पहले कभी किसी व्यक्ति ने नहीं बनाया था। छह शीर्ष विश्वविद्यालयों ने, जिनमें कोलंबिया और हार्वर्ड भी शçामल थे, इस इंसान को मानद उपाधियों से विभूषित किया, जो कभी अपनी प्रारंभिक शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाया था।
अलस्मिथ ने मुझे बताया कि इनमें से कोई चीज क भी नहीं हुई होती अगर उन्होंने हर दिन सोलह घंटे की कड़ी मेहनत नहीं की होती। इसी से वे अपनी नकारात्मक स्थितियों को सकारात्मक अनुभव में बदल सके। "यही जीवन हैक्" नहीं यह जीवन नहीं है। यह जीवन से अधिक है। यह विजयी जीवन है। सुख-शांति का मानसिक रवैया विकसित करने के लिए हमें इस नियम को आत्मसात कर लेना चाहिए।
चौथा फार्मूला
खुद से पूछें, "बुरे से बुरा क्या हो सकता है।"
विलिस एच. कैरियर एक प्रतिभाशाली इंजीनियर थे, जिन्होंने एयर-कंडीशनिंग उद्योग शुरू किया और जो न्यूयार्क में विश्वप्रसिद्ध कैरियर कॉरपोरेशन के प्रमुख थे। चिंता को सुलझाने के लिए इतनी बढि़या तकनीक मैंने बहुत कम सुनी है। कैरियर ने मुझे जो बताया, वह इस प्रकार है-
"मैं न्यूयार्क से बफैलो फोर्ज कंपनी मे काम करता था। मुझे मिसूरी में लाखों डॉलर के कारखाने में गैस साफ करने की मशीन लगाने का काम सौंपा गया। गैस साफ करने का यह तरीका नया था इसलिए मेरे काम में अप्रत्याशित कठिनाईयां आई। मशीन काम करने लगी थी, पर उस तरह नहीं जिस तरह की हमने गारंटी दी थी। साथ में हमें 20 हजार डॉलर का घाटा भी हो रहा था। मैं अपनी इस असफलता से स्तब्ध था। कुछ समय तक तो मैं इतना चिंतित रहा कि मेरी नींद उड़ गई। आखिरकार मुझे एक सीधी सी बात समझ में आ गई कि चिंता करने से मुझे कोई फायदा नहीं होने वाला। मैंने बिना चिंता किए समस्या का हल ढूंढने का रास्ता निकाला। मैंने तीन कदम उठाए।"
पहला कदम- मैंने बिना डरे, ईमानदारी से स्थिति का विश्लेषण किया और अनुमान लगाया कि इस असफलता के परिणामस्वरूप मेरे साथ बुरे से बुरा क्या हो सकता है।
दूसरा कदम- बुरे से बुरे परिणामों का अनुमान लगाने के बाद आवश्यकता पड़ने पर इसे स्वीकार करने के लिए मैंने खुद को तैयार किया।
"बुरी से बुरी स्थिति का अनुमान लगाने और जरूरत पड़ने पर इसे स्वीकार करने के बाद एक महžवपूर्ण बात हुई। मैं तत्काल शांत हो गया और काफी दिनों बाद मैंने पहली बार राहत की सांस ली।"
तीसरा कदम- इसके बाद मैंने अपना पूरा समय और ऊर्जा शांति के साथ इस काम में लगाई कि उन बुरे से बुरे परिणामों को कैसे सुधारा जाए जिन्हें मानसिक रूप से मैंने पहले ही स्वीकार कर लिया था।
मैंने अब ऎसे तरीके खोजने शुरू किए, जिनसे मैं अपनी असफलता को सफलता में बदल सकता था और 20 हजार डॉलर के घाटे को कम कर सकता था। इसके लिए मैंने कई परीक्षण किए और अंत में इस नतीजे पर पहुंचा कि अगर हम एक अतिरिक्त यंत्र खरीदने में पांच हजार डॉलर और खर्च करें, तो हमारी समस्या सुलझ सकती है। हमने ऎसा ही किया। नतीजा, हमारी कंपनी को 20 हजार डॉलर का घाटा होने के बजाए 15 हजार डॉलर का फायदा हो गया।
कैरियर ने आगे कहा, "अगर मैं चिंता करता रहता तो शायद यह कभी नहीं कर पाता, क्योंकि चिंता के साथ बहुत बुरी बात यह है कि यह हमारी एकाग्रता की शक्ति को खत्म कर देती है। हम निर्णय ले पाने की शक्ति खो देते हैं। परन्तु जब हम बुरे से बुरे परिणाम का सामना करने के लिए खुद को विवश करते हैं और उसे मानसिक रूप से स्वीकार कर लेते हैं, तो हम इस स्थिति में आ जाते हैं कि अपनी समस्या पर पूरी एकाग्रता से विचार कर उसे हल कर सकें।"
चिंताजनक स्थितियों को सुलझाने के जादुई टिप्स
- व्यस्त रहें। चिंतित आदमी को पूरी तरह से काम में डूब जाना चाहिए, वरना वह निराशा में मुरझा जाएगा।
- दुखी होने का कारण यह है कि आपके पास यह चिंता करने की फुरसत हो कि आप सुखी हैं या नहीं।
- अपने आपको ऎसी छेाटी-छोटी बातों से विचलित होने की अनुमति नहीं दें, जिन्हें हमें नजरअंदाज कर देना चाहिए।
- खुशी के विचार सोचें, खुशी का अभिनय करें और धीरे-धीरे आप खुशी का अनुभव करने लगेंगे।
- अपनी नियामतें गिनें, कष्ट नहीं।
- अपने दुश्मन के लिए नफरत की भट्टी को इतनी तेज नहीं करें कि आप खुद भी उसमें जल जाएं।
- हर दिन एक अच्छा काम करें, जिससे किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाए।

Monday 3 August 2009

नेल पॉलिश-राशि अनुसार


ज्योतिष में रंगों का विशेष महžव बताया गया है। राशि अनुसार अनुकूल रंगों के प्रयोग से संबंधित ग्रह की अनुकूलता में वृद्धि होती है। चीनी ज्योतिष के अनुसार भी अलग-अलग रंगों की प्रवृत्ति अलग-अलग होने के कारण मानव की प्रवृत्ति पर असर करते हैं। शरीर के लिए भी अनुकूल रंगों के प्रयोग करने से सकारात्मक ऊर्जा "ची" को संतुलित कर समन्वय किया जा सकता है। इससे सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। इसी क्रम में महिलाओं द्वारा प्रयोग की जाने वाली नाखून पॉलिश का रंग यदि उनकी राशि के अनुरूप हो तो संबंधित राशि स्वामी के कारक में वृद्धि तथा शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

मेष राशि- मेष राशि की महिलाएं लालिमायुक्त, सफेद, क्रीमी तथा मेहरून रंग की नेल पॉलिश प्रयोग में लाएं।
वृष राशि- लाल, सफेद, गेहूंआ या गुलाबी रंग या इनसे मिश्रित रंगों की नेल पॉलिश लगाएं।
मिथुन- आपके लिए हरी, फिरोजी, सुनहरा सफेद या सफेद रंग की नेल पॉलिश उपयुक्त रहेगी।
कर्क- श्वेत व लाल या इनसे मिश्रित रंग अथवा लालिमायुक्त सफेद रंग की नेल पॉलिश का प्रयोग उपयोगी रहेगा।
सिंह- गुलाबी, सफेद, गेरूआ, फिरोजी तथा लालिमायुक्त सफेद रंग उपयुक्त है।
कन्या- आप हरे, फिरोजी व सफेद रंग की नेल पॉलिश लगाएं।
तुला- जामुनी, सफेद, गुलाबी, नीली, ऑफ व्हाइट एवं आसमानी रंग की नेल पॉलिश अनुकूल रहेगी।
वृश्चिक- सुनहरी सफेद, मेहरून, गेरूआ, लाल, चमकीली गुलाबी या इन रंगों से मिश्रित रंग की नेल पॉलिश लगाएं।
धनु- पीला, सुनहरा, चमकदार सफेद, गुलाबी या लालिमायुक्त पीले रंग की पॉलिश लगाएं।
मकर- सफेद, चमकीला सफेद, हल्का सुनहरी, मोरपंखी, बैंगनी तथा आसमानी रंग की नेल पॉलिश उपयुक्त है।
कुंभ- जामुनी, नीला, बैंगनी, आसमानी तथा चमकीला सफेद रंग उत्तम रहेगा।
मीन- पीला, सुनहरा, सफेद, बसंती रंगों का प्रयोग करें। सदा अनुकूल प्रभाव देंगे।
ऊपर बताए गए रंग राशि स्वामी तथा उनके मित्र ग्रहों के रंगों के अनुकूल हैं।

Friday 31 July 2009

Mightier Media is need of the hour: Meira Kumar

KCK International Award Ceremony 2008 held at Taj ; Harinder Baweja and team wins 2nd KCKI award of US$ 11,000 ; Ashok Gehlot praises restrained media; 10 merit award also conferred
Delhi, 31st July:
Media came in for high praise on Friday for its restrained role in times of crisis at the KCK International award ceremony today. The second KCK award for excellence in print journalism was conferred to Harinder Baweja and her team members by Meira Kumar, Speaker, Lok Sabha and Ashok Gehlot, Chief Minister, Rajasthan at hotel Taj Palace. Addressing the august gathering attended by the senior politicians, officials, literati and media persons, chief guest of the function Meira Kumar said that incisive reporting of the issues is need of the hour in conflict ridden world and there is need for a silent revolution. Appreciating the efforts of the winning team Kumar said that striving for truth and objectively, journalists ought to rise above the jingoism that may do more harm than good to the nations. Meira Kumar traced her connection with Rajasthan by referring to her student life spent at Vanasthali Vidyapeeth. She said that the stay in Rajasthan was a memorable period of her life.
Speaking from his long experience Gehlot lauded the media for restoring faith in humanity by their objective reportage of critical events. Referring to social initiatives by Patrika group he said that media campaigns contribute to bringing the marginalized people into mainstream. Expressing concern over nadir of social values he highlighted need for national debate.
Talking about the global trends in journalism Gulab Kothari, Chief Editor, Patrika group cautioned the journalists against the ephemeral temptations for fame. He urged the new journalist to pursue free and fearless journalism contributing to positive change in society.
The winning team was given a cash prize of $ 11,ooo with medal and certificate. The award instituted last year in the memory of the founder of Patrika group Karpoor Chandra ‘Kulish’, is given to the team of a daily newspaper to recognize contributions of print journalists upholding the social values with deep sense of respect for the profession. The winning story series ‘Welcome to the Headquarters of Lashkar – e - Tayyeba’ published in the Hindustan Times in December, 08 was selected as the best from among 173 entries received from across the world. Other members of the winning team copy editor Atulendra Nath Chaturvedi and art director Ujma Moshin also received certificate and medal at the function.
A total of 155 Indian and 18 foreign stories from 48 Indian and 11 foreign newspapers, including those of USA, France, Serbia, Mauritius, Egypt, Sri Lanka, Afghanistan and Pakistan were received as entries for this year award theme ‘Terrorism and Society’. N Ram, Editor in Chief, The Hindu, N Ravichandran, Director, IIM, Indore, Aruna Roy, Social Activist and Gulab Kothari, Chief Editor, Patrika group constituted the jury panel. The HT had been the joint winner of the first KCK International award 2007 last year with Dawn, Pakistan.
Dignitaries at the function
The function was attended by the dignitaries including Murli Manohar Joshi, Lalu Prasad Yadav, Ramvilas Paswan, Madan Lal Khurana, Sachin Pilot, Mahadev Singh Khandela, Ustad Amjad Ali Khan, Sheeshram Ola, Madan Lal Khurana, Namonarayan Meena, Bhawani Singh Rajawat, Jyoti Mirdha, Sam Balsara, SK Roongta and others.
10 teams win Merit Award and appreciation
1. India’s Porous Borders ; Hindustan Times , Chandigarh/ New Delhi ; Kanwar Sandhu, Manish Tiwari, Sunita Aron, Arun Joshi, Rahul Karmakar)
2. Is atankwadi ki khata kya thi ; Hindustan, Lucknow; Dayashankar Shukla, Neelmani, Nasiruddin
3. Ab shuru hua operation Ajamgarh ; Amar Ujala, Varanasi ; Tirvijay Singh and Praveer Sharma
4. Atank ka Arthshastra; Dainik Jagran, New Delhi; Anshuman Tiwari, Prashant Mishra, Vishnu Tripathi, Dinesh Chandra, Rajkishore
5. Violence in India is fueled by religious and economic divide; The New York Times, USA; team: Hari Kumar & Heather Timmons
6. Mumbai’s terror makes Mohali bleed; Indian Express, Chandigarh; Nitin Jain, Jasbir Malhi, Kamleshwar Singh
7. Azamgarh : District in discomfort; The Tribune, Chandigarh; Shahira Naim, Dr. Eashwar Anand, Kuldeep Dhiman
8. He loved Hollywood’s cop vs baddies movies Hindustan Times, New Delhi/Kolkata; Rahul Karmakar, Digambar Patowary
9. Lunch Hours, Evening are chosen for terror strikes ; The Tribune, Chandigarh; Prabhjot Singh and team
10. What branches grow in this stony rubbish?; The Daily Mirror, Sri Lanka; Jamila Najimuddin and team

शांतिपूर्ण क्रांति की जरूरत

नई दिल्ली। राजस्थान पत्रिका समूह के संस्थापक कर्पूर चन्द्र कुलिश की स्मृति में देश के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार केसी कुलिश इंटरनेशनल अवार्ड फॉर एक्सिलेंस इन प्रिंट जर्नलिज्म का भव्य और गरिमापूर्ण समारोह शुक्रवार को नई दिल्ली के ताज पैलेस होटल में आयोजित किया गया। समारोह की मुख्य अतिथि लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने इस अवसर पर अपने संवेदनशील सम्बोधन में कहा कि आज देश में शांतिपूर्ण क्रांति की आवश्यकता है। आप जहां हैं, वहीं से लोगों के मानस में बदलाव कर समाज को बेहतर बना सकते हैं। समारोह की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि आज समाज के हर क्षेत्र में आ रही गिरावट चिंता का विषय है और इस पर राष्ट्रीय बहस की आवश्यकता है।

दस को मेरिट अवार्ड

समारोह में दस मेरिट अवार्ड भी दिए गए। इनमें हिन्दुस्तान टाइम्स, चण्डीगढ़ के कंवर संधु की टीम को "इण्डियाज पोरस बोर्डर्स", हिन्दुस्तान, लखनऊ के दयाशंकर शुक्ला की टीम को "इस आतंकवादी की खता क्या थी", अमर उजाला, वाराणासी के तिरविजय सिंह की टीम को " अब शुरू हुआ ऑपरेशन आजमगढ़", दैनिक जागरण, नई दिल्ली के अंशुमन सिंह की टीम को "आतंक का अर्थशास्त्र", न्यूयॉर्क टाइम्स, अमरीका के हरिकुमार एवं हीदर टिमोन्स को "वायलेंस इन इण्डिया", इण्डियन एक्सप्रेस, चण्डीगढ़ के नितिन जैन की टीम को "मुम्बईज टेरर मेक्स मोहाली ब्लीड", द ट्रिब्यून, चण्डीगढ़ की शाहिरा नईम की टीम को " आजमगढ़: डिस्ट्रिक्ट इन डिस्कम्फर्ट", हिन्दुस्तान टाइम्स, गुवाहाटी के राहुल करमाकर की टीम को "ही लव्ड हॉलीवुड़ कॉप वर्सेज बडीज मूवीज", द ट्रिब्यून, चण्डीगढ़ के प्रभजोत सिंह को "लंच ऑवर्स, इवनिंग आर चूजन फॉर टेरर स्ट्राइक्स" और डेली मिरर, श्रीलंका कीजमीला नजीमुद्दीन को "वाट ब्रांचेज ग्रो इन दिस स्टोनी रबिश" खबरों के लिए पुरस्कृत किया गया।

173 प्रविष्टियां मिलीं

पुरस्कार का चयन 2008 में एक जनवरी से 31 दिसम्बर तक प्रकाशित समाचारों में से किया गया। चयन मण्डल को अमरीका, फ्रांस, सर्बिया, मॉरिशस, मिश्र, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और श्रीलंका सहित दुनिया भर के मीडिया संस्थानों से 173 प्रविष्टियां प्राप्त हुई। पुरस्कार चयन मण्डल में देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्र द हिन्दू के एडीटर इन चीफ एन. राम, आईआईएम, इंदौर के निदेशक एन. रविचन्द्रन, मेग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित अरूणा रॉय और पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी शामिल रहे। पत्रकारिता के साथ ही विज्ञापनों के सामाजिक महत्व को भी पत्रिका समूह ने समझा है। इसी दृष्टिकोण से पिछले एक दशक से सामाजिक क्षेत्र से जुड़े श्रेष्ठ विज्ञापनों को पत्रिका समूह की ओर से कन्सन्र्ड कम्यूनिकेटर अवार्ड दिया जा रहा है। गत वर्ष से इस पुरस्कार की राशि भी कर्पूर चन्द्र कुलिश की स्मृति में 11 हजार अमरीकी डॉलर की जा चुकी है।

मूल्यों में गिरावट चिंता का विषय: गहलोत

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि केसी कुलिश अवार्ड के लिए (आतंकवाद और समाज) जो विषय चुना है। उससे इस अवार्ड का महत्व और बढ़ गया है। देश के सामने आज आतंकवाद और नक्सलवाद सहित कई चुनौतियां हैं। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद इस साठ साल के दौर में मूल्यों में गिरावट आना चिन्ता का विषय है। अब सोच समझकर आगे बढ़ना होगा।

उन्होंने कहा कि राजस्थान पत्रिका समूह के संस्थापक कर्पूर चन्द्र कुलिश संघर्षशील व्यक्तित्व के धनी थे। आजादी के बाद वे पत्रकारिता में आगे आए। आज राजस्थान पत्रिका प्रदेश के हर घर में अपनी पहचान रखती है। पत्रकारिता ही नहीं सामाजिक सरोकारों में भी राजस्थान पत्रिका का कोई सानी नहीं।
गुजरात व महाराष्ट्र का भूकम्प, करगिल युद्ध व अन्य कई मौकों पर पत्रिका ने आगे आकर समाज हित के लिए कार्य किया है। यही कारण है कि लोग आज पत्रिका समूह को सहयोग दे रहे हैं। पत्रिका समूह ने केसी कुलिश अवार्ड शुरू कर अच्छा कदम उठाया है। प्रतिभा की खोज करना बड़ी बात है। इस अवार्ड से युवा पीढ़ी में उत्साह बढ़ेगा।

पत्रकारिता चमत्कार नहीं, श्रम-कर्म और कौशल है: कोठारी

पत्रकारिता चमत्कार नहीं। श्रम है, कर्म है, कौशल है और पत्रकार इनकी आत्मा है। शेष सभी साधन है। पत्रकारिता सिखाई जा सकती है। पत्रकार पैदा होते हैं या समय की धार पर तैयार होते हैं। यह कहना है पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी का। उन्होंने कहा कि मीडिया की भूमिका पर आज जितने प्रश्न उठने लगे हैं, पहले कभी नहीं उठे। गुजरात के दंगे रहे हों या मुम्बई का आतंककारी हमला, लोग कहने लगे हैं कि धीरे-धीरे पत्रकारिता का मूल उद्देश्य छूटता जा रहा है। व्यापार और मनोरंजन हावी हो रहा है।
आज पूरा विश्व आतंकवाद से आतंकित है। ऎसे में इस नई पत्रकारिता के दम पर कैसे लोगों में प्राण फूंकेंगे? पत्रकारिता को अन्य सभी हितों से ऊपर उठकर देशहित के लिए संकल्पित हो जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि राजस्थान पत्रिका किसी उद्योगपति अथवा धनाढ्य परिवार का समाचार पत्र नहीं है। श्रद्धेय बाबूसा ने मात्र 500 रूपए की उधार की रकम से इसे शुरू किया था। आज उस उधार को समाज को लौटाने का विनम्र प्रयास कर रहे हैं। जैसा बीज होता है वैसा ही पेड़ होता है और वैसे ही फल लगते हैं। इस अखबार का सत्य यही है कि पिछले पांच दशकों में इसे संकल्प से ही सींचा गया है। आज पत्रिका समूह के अखबार प्रतिदिन लगभग दो करोड़ पाठकों द्वारा पढ़े जा रहे हैं। देश के बड़े पांच हिन्दी अखबारों में इसका स्थान है।


उन्होंने कहा कि जिनके नाम (कर्पूर चन्द्र कुलिश) से यह अवार्ड दिया जा रहा है, और राजस्थान पत्रिका सदा एक-दूसरे के पर्याय ही बने रहे। एक ही लक्ष्य, एक ही स्वप्न और सम्पूर्ण जीवन यात्रा की एक ही कहानी। इसीलिए पत्रिका आज आत्मा का, आत्मीयता का अखबार बन पाया है। लोग अपने धर्म ग्रन्थों की तरह इस पर विश्वास करते हैं।

इसमें लिखे हुए को जीवन में उतारने का प्रयास भी करते हैं। ऎसे अनेक अवसर आ चुके हैं, जब पूरे प्रदेश ने पत्रिका के साथ खड़े होकर दिखाया। मध्यप्रदेश के भोपाल में तो एक आह्वान पर डेढ़ लाख लोग तालाब में श्रमदान करने पहुंच गए। केसी कुलिश अवार्ड भी आज की पत्रकारिता को नए सिरे से पल्लवित और पुष्पित करने का प्रयास है।

पुरस्कार हरिन्दर बवेजा को

देश के कई वरिष्ठ राजनेताओं, केन्द्रीय मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, संगीत, फैशन, विज्ञापन व कॉरपोरेट जगत की हस्तियों की मौजूदगी में हुए इस समारोह में इस वर्ष का केसीके अवार्ड वरिष्ठ पत्रकार हरिन्दर बवेजा और उनकी टीम को हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित उनकी स्टोरी वेलकम टू द हैडक्वार्टर्स ऑफ लश्कर-ए-तैयबा के लिए केसीके पुरस्कार प्रदान किया गया। पुरस्कार के रूप में उन्हें प्रशस्ति पत्र, मैडल और 11 हजार अमरीकी डॉलर का चैक दिया गया।

इस वर्ष पुरस्कार की थीम आतंकवाद और समाज रखी गई थी। इस विषय पर आधारित देश-विदेश के प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित दस समाचारों को मेरिट अवार्ड भी दिए गए। अंत में राजस्थान पत्रिका के डिप्टी एडीटर भुवनेश जैन ने धन्यवाद दिया। संचालन सहायक महाप्रबंधक प्रवीण नाहटा ने किया।

बहुत पुराना सम्बन्ध है राजस्थान से

इस मौके पर लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने अपनी चिर-परिचित गम्भीर और संवेदनशील शैली में अपना उद्बोधन दिया और कहा कि राजस्थान से उनका बहुत पुराना सम्बन्ध है। उन्होंने कहा कि मैं वनस्थली विद्यापीठ में थी और बहुत समय जयपुर में रही। यह वह समय था, जब मैं अपने जीवन के लिए तैयार हो रही थी, इसलिए आज मुझ में जो भी अच्छी बात है उसकी वजह राजस्थान है। उन्होंने कहा कि पत्रिका समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी से उनका परिचय जयपुर में तब हुआ था, जब वे सामाजिक न्याय व अघिकारिता मंत्री के नाते विकलांगों के एक कार्यक्रम मे गई थीं और वहां गुलाब कोठारी भी आए थे। तभी मुझे लगा था कि वे संवेदनशील व्यक्ति हैं।

उन्होंने कहा मैं इस कार्यक्रम में आई ही इसलिए हूं कि गुलाब कोठारी उस कार्यक्रम में आए थे। यह संवेदनशीलता का सम्बन्ध है।

हिन्दी की बेचारगी खत्म कीजिए

मीरा कुमार ने कहा कि हिन्दी वास्तव में बहुत बेचारी भाषा हो गई है, लेकिन इसकी बेचारगी खत्म होनी चाहिए। हर भाषा की अपनी गरिमा और सौष्ठव होता है। इससे खिलवाड़ नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं राजस्थान पत्रिका का सोमवार और गुरूवार का अंक जरूर पढ़ती हूं, क्योंकि इसमें अक्षर यात्रा आता है, जो हर अक्षर के महत्व को बताता है। हिन्दी के लिए राजस्थान पत्रिका के इस प्रयास को मैं साधुवाद देना चाहती हूं।

हमारा भी कर्ज है

मीरा कुमार ने कहा कि कुलिश ने यह समाचार पत्र 500 रूपए के कर्ज से शुरू किया था और पत्रिका आज अपने तरीके से यह कर्ज चुका रहा है। हम सभी का भी समाज के प्रति कुछ कर्ज है जिसे हमें चुकाना चहिए।

तमसो मा ज्यातिर्गमय

मीरा कुमार ने कहा कि इस समारोह की शुरूआत दीप प्रज्जवलन से हुई है, इसलिए मेरी कामना है कि पत्रकारिता अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए, सत्य से असत्य को दूर करे और हम जो मरणासन्न हैं उन्हें जीवन प्रदान करे। उन्होंने कहा कि पत्रिका ने यह पुरस्कार शुरू कर विश्व को जोड़ा है।

...तो गिरफ्तार हो जाती

पुरस्कार प्राप्त करने वाली वरिष्ठ पत्रकार हरिन्दर बवेजा ने पुरस्कृत स्टोरी की जानकारी देते हुए कहा कि इस स्टोरी को करने से पहले मैंने अपने सम्पादक तरूण तेजपाल से कहा था कि लश्कर-ए-तैयबा के मुख्यालय जाऊंगी तो गिरफ्तार कर ली जाऊंगी, इस पर मेरे सम्पादक ने कहा कि गिरफ्तार हो जाओगी, तो और अच्छी स्टोरी बन जाएगी। उन्होंने कहा कि इस स्टोरी के लिए उनकी सहायता पाकिस्तान के एक वरिष्ठ राजनेता ने की जो साबित करता है कि वहां के राजनेता ऎसे संगठनो को प्रश्रय देते हैं।

कई दिग्गज हस्तियां पहुंची

अवार्ड समारोह में पूर्व केन्द्रीय मंत्री व सांसद लालूप्रसाद यादव, रामविलास पासवान, शरद यादव, मुरली मनोहर जोशी, शीशराम ओला, अखिलेशप्रसाद यादव, राजस्थान के पूर्व राज्यपाल मदनलाल खुराना, भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरूण चतुर्वेदी, केन्द्रीय मंत्री भरत सिंह सोलंकी, टॉम बदक्कन, नमोनारायण मीणा, महादेव खण्डेला, सचिन पायलट, राज्यसभा सांसद ज्ञानप्रकाश पिलानिया, सांसद ताराचंद भगोरा, ज्योति मिर्घा, बद्रीराम जाखड़, रघुवीर मीणा, प्रभा ठाकुर, खिलाड़ीराम बैरवा, लालचंद कटारिया, हरीश चौधरी, इज्येराज सिंह, अतुलकुमार अंजान, रतन सिंह, भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद, सुमित्रा महाजन, कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी, प्रवक्ता मोहन प्रकाश, अभिषेक मनु सिंघवी, कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव भंवर जितेन्द्र सिंह, वेदप्रकाश, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा, फैशन डिजाइनर राघवेन्द्र राठौड़, सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान, मध्यप्रदेश के जनसम्पर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, विधायक ओम बिड़ला, भवानी सिंह राजावत, रामकेश मीणा, कर्नल सोनाराम व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजीव शुक्ला सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।

कॉरपोरेट जगत से भी

समारोह में कॉरपोरेट की प्रमुख हस्तियां भी शामिल रहीं। इनमें स्टारकॉम के दक्षिण एशिया प्रमुख रवि किरन, एमिटी यूनिवर्सिटी के असीम चौहान, मेडिसिन एडवर्टाइजिंग के सेम बलसारा, आर.के. स्वामी एडवर्टाइजिंग के शेखर स्वामी, स्टील अथॉरिटी ऑफ इण्डिया के चेयरमैन एस.के. रूंगटा, सूर्या फू ड्स के शेखर अग्रवाल, होण्डा स्कूटर्स के वाइस प्रेसीडेण्ट ज्ञानेश्वर सेन, फैशन डिजाइनर राहुल जैन, मारूति इण्डस्ट्रीज के मार्केटिंग निदेशक मयंक पारीक, आकाश इंटरनेशनल के निदेशक जे.सी. चौधरी आदि शामिल हैं।