Tuesday 8 September 2009

आठ अजूबे इस दुनिया में

हमने वही जानी पहचानी लोकतांत्रिक पद्धति का सहारा लिया। हमने समाज के कुछ लोग चुने और उनसे जाकर पूछा-आपकी नजर में ये आठ अजूबे हैं क्या। उनके जवाब कुछ ऎसे रहे...
1. टेलीविजन
अपने महादेश का पहला अजूबा है "टेलीविजन"। सारा देश इससे चिपका रहता है। बच्चे टीवी के चक्कर में खाना भूल जाते हैं और बड़े सोना। ऎसे-ऎसे दृश्य दिखाए जाते हैं कि बेटा बाप से ज्यादा ज्ञानी हो जाता है। एक कहावत है "करेला और नीम चढ़ा।" अजूबे में अजूबा है अपने न्यूज चैनल। क्या हाहाकारी प्रोग्राम आ रहे हैं- नाचती नागिन और नाग, भूत बंगले का रहस्य, पीपल के पेड़ का भूत, पिछले जनम की दास्तान। सामाजिक सीरियल देख बच्चे अपनी मम्मी से सवाल करते हैं-मम्मी-मम्मी आप भी प्रेरणा आंटी की तरह नई-नई शादी क्यों नहीं करतीं।

2. मोबाइल
हमारे ज्ञानी जजों ने दूसरा अजूबा करार दिया है "मोबाइल" को। जिसे देखो हाथ मे दबाए घूम रहा है। एक घर में पांच मैंबर और मोबाइल। खा रहे हैं तो बज रहा है। सो रहे हैं तो बज रहा है। ससुरा प्रेम करते वक्त भी चुप नहीं रहता। पल भर में सारा नशा काफूर। मोबाइल ने झूठ बोलना सीखा दिया। पति महाशय अपनी पुरानी माशूका से मिलने उसके घर जा रहे हैं और पत्नी को कह रहे हैं मंदिर जा रहा हूं, थोड़ी देर हो जाएगी। युवक व युवतियां एक-दूसरे को एसएमएस किए जा रहे हैं। महान गायक कौन करो एसएमएस। सबसे लोकप्रिय अभिनेत्री कौन करो एसएमएस। धोनी को लंबे बाल रखने चाहिए या काटने चाहिए करो एसएमएस।

3. हिंदी फिल्में
समकालीन जीवन का तीसरा अजूबा है हमारी "हिंंदी फिल्में"। जिंदगी से दूर। यथार्थ से परे। सपनों की दुनिया। पता ही नहीं चलता कौन किससे प्रेम कर रहा है। मेले में बिछड़े दो भाई अब ऑस्ट्रेलिया में जाकर दोस्त बन गए। नायिकाएं वैंप बन रही हैं। एक सीरियल किसर पैदा हो गया। फलां फिल्म में फलां हिरोइन ने कितने चुंबन दिए। फलां ससुर ने फलां बहू के किसिंग दृश्य फिल्म से हटवाए। गायक नायक बन रहे हैं नायक गायक। नायिकाएं एक गाने में आकर मटक जाती हैं और डेढ़ करोड़ झटक कर ले जाती हैं। पुरानी बोतलों में नई शराब भरी जा रही है।

4. क्रिकेट
चौथा अजूबा है "क्रिकेट"। बड़े बूढ़े कहते थे अंगे्रज मर गए औलाद छोड़ गए। हम कहते हैं फिरंगी चले गए क्रिकेट पटक गए। सारा देश क्रिकेट का दीवाना है। बिल्ली के भाग्य से सन् तिरासी में छींका क्या फूटा कि हम अपने को फन्ने खां समझने लग गए। जिसे देखो वहीं गेंद-बल्ला चला रहा है। कभी-कभी पदाधिकारी जूते भी चला देते हैं। अरबों की आमदनी सचिन की कमर में दर्द हो जाता है, तो सारा देश बैड रेस्ट करने लगता है। गांगुली के लिए आंदोलन होता है। धोनी पर लड़कियां टूट पड़ती हैं। खूब माल बंटता है। जिन्हें माल नहीं मिलता, वे जूतियों में दाल बांटने लगते हैं।

5. एनजीओ
हमारे दश का पांचवा अजूबा है "एनजीओ"। "कर सेवा और खा मेवा" यह वाक्य ऋषियों ने बनाया था। आज के एनजीओ का सूत्र वाक्य है "सेवा दिखा-मेवा कमा।" सेवा करने में क्या रखा है, बस सेवा करते दिखाना जरूरी है। सरकारी अनुदान खाओ मजे उड़ाओ। बाबू के पांच सैंकड़ा, छोटे अफसर के सात सैंकड़ा, अफसर के पंद्रह सैंकड़ा। दस सैंकड़ा में कौवे, कुत्ते और गौ माता। अगर सौ में से सैंतीस फिसदी दान करने का कलेजा है, तो बेटा तेरे एनजीओ को ऊपर वाला भी अनुदान देने से इनकार नहीं कर सकता। हालांकि वह तो भाव का भूखा है। प्रसादी में ही राजी हो जाता है।

6. राजनीति
छठा अजूबा है "पॉलिटिक्स"। आज हमारे देश में चपरासी बनने के लिए भी मिडिल पास होना चाहिए। पर मंत्री बनने के लिए न पढ़ाई की जरूरत है न लिखाई की। जिसके हाथ में लाठी वही राजनीति की भैंस हांकने लग जाता है। मंत्री का बेटा मंत्री बनना तय है। जनता का बेटा जूतियां चटखाता घूमता है। नेता का पुत्र पैदा होते ही सरकारी कार पा जाता है। कहने वाले कहते हैं कि मेरे देश का नेता सौ में से नब्बे बेईमान, फिर भी मेरा देश अपने को कहता है महान।

7. हंसी
आज के युग का सातवां अजूबा है "हंसी"। यह खबर पढ़कर गश आ गया कि सौ चुटकुलों ने एक हजार करोड़ का कारोबार कर डाला। यह सुनते ही हमारा मन हुआ कि सारे पुस्तकालय फूंक डालें। किताबें जला दें। डिग्रियां फाड़ दें। बस चुटकुले याद करें। हंसे और हंसाए। हंसी का यह आलम हो गया कि महाशय जुगाली चंद्रजी ने अपनी वसीयत में लिखा कि मेरे बारहवें पर सिद्धू, शेखर और पेरिजाद कोला के संग बारह हंसोड़ों के बुलाना और उन्हें श्राद्ध खिलाना।

8. अपनी जोड़ी
तो जनाब ये तो हुए सात अजूबे। पर आठवां अजूबा है "अपनी जोड़ी"। अपनी जोड़ी मे कोई भी दो हो सकते हैं जैसे मियां-बीवी, सास-बहू, बाप-बेटा, दोस्त-दोस्त, प्रेमी-प्रमिका, लड़का-लड़की, नेता-कुर्सी, काला धंधा-पूंजी अर्थात जो भी दो चीजें मिल कर मुनाफा कमा लें, वहीं आठवां अजूबा है। ज्ञानीजनों हमें माफ करना। ये अजूबे हमारे दिमाग की उपज नहीं हैं। हमने तो जैसा सुना वैसा लिखा। अगर आपको "आरती" उतारनी हो, तो उन लोगों की उतारना जिनके बारे में हमने अजूबा-कथा के प्रारंभ में बताया था।

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