Friday 20 May 2011

लंबी और कमजोर रोमांटिक कॉमेडी


निर्माता अभिषेक पाठक और निर्देशक लव रंजन की फिल्म प्यार का पंचनामा में सारे अभिनेता नए ही हैं। निर्देशक भी नए हैं लेकिन दुर्भाग्य से दर्शक नए नहीं है। वे फिल्में देखते रहते हैं। प्यार का पंचनामा रोमांटिक कॉमेडी है और तीन दोस्तों के लड़कियों से मिलने ओर बिछुड़ने की कहानी है। कैनवस फरहान अख्तर की दिल चाहता है से मिलता है लेकिन इसके अलावा कुछ नहीं मिलता।

तीनों दोस्त साथ रहते हैं और एक दिन अचानक तीनों की जिंदगी में तीन तरह की लड़कियां आती हैं और "कुत्तागिरी" शुरू होती है। तीनों लड़कियों में ऎसी कोई खास बात नहीं है कि जिसके लिए उनके पीछे इस तरह से पड़ा जाए। तीनों नायक भी नए हैं और वे अपना काम ठीक ठाक कर गए हैं। लेकिन कहानी में लड़कियों को लेकर अनीस बज्मीवादी टिप्पणियां बहुत ज्यादा हैं जो लड़कियों को हीन दिखाने की पुरूषोचित सोच का वमन है। जहां एक पात्र विक्रांत कहता है कि कोई कितनी भी समानता और एक दूसरे को स्पेस देने की बात करे वो तब तक ही ठीक लगती है जब तक लड़की आपको मिली नहीं हो या पहली बार कंधे पर सिर रखकर रो रही हो। उसके बाद साथ रहते हुए आप एक दूसरे को स्पेस देने की कल्पना भी नहीं कर सकते।

हां, इंटरवल से पहले तक कुछ कॉमिक संवाद और दृश्य अच्छे लगे हैं लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म ऊबाऊ और लंबी होती चली जाती है। लिव इन से लेकर दूसरे बॉय फे्रंड को बर्दाश्त करने और प्यार में बलिदान और तौहीन सहने जैसी कई सिचुएशन फिल्म में हैं लेकिन वे ताजा नहीं लगती और इसलिए प्यार का पंचनामा एक अच्छे विचार और कथासूत्र के बावजूद बहुत बेकार लगती है।

खासकर फिल्म की अवधि बेहतर संपादन के बाद यदि बीस से पच्चीस मिनट और कम कर दी जाती और महिलाओं और युवा लड़कियों के प्रति लेखक निर्देशक कुछ स्पष्ट और उदार नजरिए से सोचते तो शायद बात अलग होती। फिलहाल फिल्म में इतनी सी गुुंजाइश है जवान होने की दहलीज पर खड़े दर्शक टाइमपास के लिए इसे देख सकते हैं। लगातार पार्श्व में चलता गाना बंध गया पट्टा, देखो बन गया कुत्ता यह सोच बताने को काफी है कि आदमी कुत्ता होता है और औरत उसकी जिंदगी में आते ही उसे एक पट्टा डालती है, और उसे उम्र भर उसके कहे अनुसार ही चलना होता है, लिहाजा जितना उनसे बच सकें आप बचें। सुनने में यह बाद कबीर वाणी के "माया महाठगिनी हम जानी" जैसी है लेकिन अफसोस कि पर्दे पर यह फिल्म प्रभावित नहीं करती। गाने ठीक ठाक हैं।
रामकुमार सिंह

No comments: