Monday 1 June 2009

Healthier Mind Beautiful Skin


मन सुंदर तो तन सुंदर

जब मन प्रसन्ना रहता है, तो त्वचा भी तनावरहित रहती है। चेहरे पर आभा दमकती है। हम जो कुछ सोचते या महसूस करते हैं, उसका त्वचा पर सीधा असर पड़ता है। रोमांच होन पर रोंगटे खड़ होने वाली बात एक छोटा सा उदाहरण है। विशेषज्ञों ने त्वचा को इंद्रियों का एंटिना कहा है। खुश होने पर त्वचा चमकने लगती है, शर्म महसूस होने पर चेहरा गुलाबी हो जाता है, किसी परेशानी में चेहरे पर दाने उभर आते हैं और रोने पर चेहरे की मांसपेशियां तन जाती हैं, रोमछिद्र सिकुड़ जाते हैं, त्वचा की सतह से रक्त निचुड़ सा जाता है और वह सफेद भी दिखने लगती है। भावनाओं और मानसिक तनाव के कारण कई त्वचा रोग जैसे दाने, चकत्ते, झांइयां, या एग्जिमा हो सकता है। चेहरे पर असमय झुर्रियां पड़ सकती हैं, बाल सफेद हो सकते हैं।

अक्सर हम त्वचा को केवल एक ऊपरी आवरण समझकर उसे चमकाने और युवा बनाए रखने के प्रयत्न में लगे रहते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि यह एक बेहद संवेदनशील भावनात्मक बैरोमीटर भी है। जब कभी त्वचा सूखी सी लगती है, उस पर से पपड़ी उतरने लगती है तो हम मैसम, किसी प्रसाधन या अपने हाजमे को दोष देते हैं, लेकिन इन सबके साथ-साथ जो अन्य कारण होते हैं, वे हैं तनाव, चिंता, उदासी या मायूसी। इन सबके कारण त्वचा के रोमछिद्र सिकुड़ जाते हैं। रक्त का संचार अर्थात ऑक्सीजन और पोषक तžवों का प्रवाह दूसरी ओर मुड़ जाता है, पसीना अघिक आने लगता है तथा कोशिकाएं नष्ट होन लगती हैं।

त्वचा की प्राकृतिक नमी कम होती जाती है, तेल अघिक बनने लगता है और इन सब कारणों से दाग, धब्बे, पपड़ी व धारियां पड़ने लगती हैं। त्वचा बुझी, निस्तेज और झुर्रीदार नजर आने लगती है। जब मन प्रसन्न रहता है, तो त्वचा भी तनावरहित रहती है। रोमछिद्र खुले रहते हैं। रक्तप्रवाह ठीक रहता है। चेहरे पर स्वास्थ्य की आभा दमकती है। तेल का उत्पादन सामान्य होता है व त्वचा चिकनी, जवान और जानदार लगती है, रंग भी साफ नजर आता है। भावनाओं और त्वचा का गहरा संबंध है। यदि आप कभी देखें कि शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने पर भी आपकी त्वचा बेजान सी है या विकृत हो रही है, तो संभव है कि आपका भावनात्मक संतुलन ठीक नहीं है। अपने नकारात्मक विचारों पर काबू पाकर खूबसूरत बनने के साथ आप एक बेहतर इंसान भी बन सकती हैं।
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